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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरा आनन्द अवर्णनीय है। बहुत दुःख नहीं उठाना पड़ा। ईश्वर बड़ा दयालु है।

बापूके आशीर्वाद

पण्डितजी
सत्याग्रह आश्रम
साबरमती

महात्मा, खण्ड २, में दिये मूल गुजराती पत्रके चित्रसे।

१७८. वक्तव्य: उपवास तोड़नेके पूर्व

दिल्ली
८ अक्तूबर, १९२४

श्री गांधीने आज १२ बजे दोपहरको अपना उपवास छोड़ा।...हिन्दुओं, मुसलमानों तथा ईसाइयोंकी प्रार्थनाएँ समाप्त होनेके बाद...उन्होंने मन्द स्वरमें, जो कभी-कभी सुनाई नहीं पड़ता था, कहा:

हिन्दू-मुस्लिम एकतामें मेरी दिलचस्पी कोई नई चीज नहीं है। तीस वर्षोंसे मुझे मुख्य रूपसे इसकी चिन्ता लगी रही है। किन्तु मैं इसे प्राप्त करनेमें असफल रहा हूँ। मैं नहीं जानता कि ईश्वरकी इच्छा क्या है। आप जानते हैं कि मूल रूपमें मेरी प्रतिज्ञाके दो भाग थे। उनमें से एक तो पूरा हो गया है। दूसरेको मैंने उन मित्रोंके कहनेपर वापस ले लिया, जो उस रात श्री मुहम्मद अलीके घरपर उपस्थित थे। यदि मैं दूसरे भागको कायम रखता तो भी एकता-सम्मेलनकी सफलताके कारण मुझे अपना उपवास अब तोड़ना ही पड़ता।

हकीम अजमलखां और श्री मुहम्मद अलीकी मार्फत मुसलमानोंको सन्देश देते हुए श्री गांधीने कहा:

आज मैं आपसे यह वचन देनेका अनुरोध करता हूँ कि आवश्यकता पड़नेपर आप हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए अपने प्राणतक दे देंगे। यदि यह एकता स्थापित नहीं हुई तो मेरे लिए हिन्दू-धर्म अर्थहीन हो जायेगा और यही बात मैं इस्लाम के लिए भी कहने की धृष्टता करता हूँ। हमें एक साथ रहने लायक बनना ही है। हिन्दुओंके लिए पूर्ण स्वतन्त्रतासे अपने मन्दिरोंमें पूजा कर सकने और इसी प्रकार मुसलमानों के लिए भी उतनी ही स्वतन्त्रतासे अपनी मसजिदोंमें अजान देने तथा नमाज पढ़ सकनेकी सुविधा होनी चाहिए। यदि हम पूजाकी इस मूलभूत स्वतन्त्रताको भी सुनिश्चित नहीं कर सकते तो न तो हिन्दू-धर्मका कोई अर्थ रह जाता है और न इस्लामका। मैं आपसे यह वचन लेना चाहता हूँ और मैं जानता हूँ कि आपने मुझे यह वचन दिया है; किन्तु अब चूँकि मैं उपवास तोड़ रहा हूँ, इसलिए मैं उत्तर-