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तपकी महिमा

दायित्वकी भावनासे विवश हो गया हूँ और आपसे अपने इस वचनको फिर दोहरानेका अनुरोध कर रहा हूँ।

[ अंग्रेजीसे ]
न्यू इंडिया, ९-१०-१९२४

१७९. तपकी महिमा

८ अक्तूबर, १९२४

हिन्दू धर्म में पग-पगपर तप है। पार्वती शंकरको पाना चाहती है तो तप करे। शिवसे भूल हुई तो उन्होंने तप किया। विश्वामित्र तो तपकी मूर्ति ही थे। राम जब वनको गये तो भरतने योगारूढ़ होकर घोर तपश्चर्या आरम्भ की और शरीरको सुखा लिया।

ईश्वर दूसरी तरह मनुष्यकी कसौटी कर ही नहीं सकता। यदि आत्मा देहसे भिन्न है तो हम देहको कष्ट देते रहें, फिर भी आत्माको प्रसन्न रहना चाहिए। शरीरकी खुराक अन्न है; आत्माकी ज्ञान और चिन्तन। यह बात प्रसंग आनेपर हर व्यक्तिको अपने लिए सिद्ध करनी पड़ती है।

परन्तु यदि तप आदिके साथ श्रद्धा, भक्ति और नम्रता न हो तो तप एक मिथ्या कष्ट है। वह दम्भ भी हो सकता है। ऐसे तपस्वीसे सुखपूर्वक भोजन करनेवाले ईश्वर भक्त हजार गुना बेहतर हैं।

अपने तपकी कथा लिखने लायक शक्ति अभी मुझमें नहीं है; पर इतना कहे देता हूँ कि इस तपके बिना मेरा जीना असम्भव था। अभी मेरे नसीबमें फिरसे तूफानी समुद्र में कूदना बदा है। प्रभो, दीन समझकर तू मुझे पार लगाना!

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १२-१०-१९२४

१८०. तार: मथुरादास त्रिकमजीको

[ ८ अक्तूबर, १९२४ ][१]

ईश्वरकी दया अपार है। उपवास पूरा हुआ। तबीयत ठीक है।

[ गुजराती से ]
बापुनी प्रसादी
२५-१६
 
  1. साधन-सूत्र के अनुसार।