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१८३. सन्देश: अखबारोंको[१]

दिल्ली
९ अक्तूबर, १९२४

महात्मा गांधीने अखबारोंके लिए निम्नलिखित सन्देश दिया है:

ईश्वर सचमुच महिमावान् और कृपाका आगार है। उसकी महिमा और कृपाका अनुभव मैं इस समय कर सकता हूँ। उसीकी कृपासे मैं इस अग्नि-परीक्षासे सफलतापूर्वक निकल आया हूँ। इस अवसरपर मुझे पत्रों और तारोंसे जो सन्देश भेजे गये हैं, उन सबको देखनेकी अनुमति मुझे नहीं है; फिर भी जो थोड़े-से सन्देश मैंने देखे हैं, उनसे मैं अभिभूत हो गया हूँ। इन सन्देशोंमें जो स्नेहका पारावार उमड़ रहा है, उसमें भी मैं ईश्वरकी ही कृपा देखता हूँ। ऐसे स्नेहपूर्ण सन्देश भेजनेवाले सभी भाइयों और बहिनों को मैं धन्यवाद देता हूँ। मैं उनसे आशा करूँगा कि मेरे सामने जो काम पड़ा हुआ है, उसमें भी वे सहायता देंगे। यह ईश्वरका काम है। मैं जानता हूँ कि अबसे तीन हफ्ते पहले मेरे सिर जितनी जिम्मेदारी थी, आज उससे कहीं अधिक है। मैं भली-भाँति जानता हूँ कि उपवासके साथ मेरा काम पूरा नहीं हो गया। अभी तो वह शुरू ही हुआ है और मैं चाहता हूँ कि भारत के सभी भाई-बहन इस कार्यकी सफलता के लिए ईश्वरसे प्रार्थना करें और अपना पूरा सहयोग दें।

[ अंग्रेजीसे ]
न्यू इंडिया, ९-१०-१९२४

१८४. पत्र: शान्तिकुमार मोरारजीको

आश्विन सुदी १४ [ ११ अक्तूबर, १९२४ ][२]

भाई शान्तिकुमार,

तुम्हारा पत्र, सूतका हार और मेवा मिल गया है। तुमने नियमित रूपसे कातनेका निश्चय किया है, यह जानकर खुशी हुई। जो निश्चय किया है, ईश्वर तुम्हें उसपर दृढ़ रहनेकी शक्ति दे।

मेरी तबीयत अच्छी होती जा रही है।

  1. अपने उपवासके सम्बन्धमें यह सन्देश गांधीजीने "एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया" के प्रतिनिधिके अनुरोधपर दिया था।
  2. जुहू और गांधीजीके स्वास्थ्यकी चर्चासे प्रकट होता है कि यह पत्र १९२४ में ही लिखा गया होगा।