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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जुहूमें तुमने जो प्रेम दिखाया, वह बराबर याद आता रहता है।

मोहनदास के आशीर्वाद

गुजराती पत्र ( सी० डब्ल्यू० ४७९६ ) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य: शान्तिकुमार मोरारजी

१८५. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको

आश्विन कृष्ण २ [ १४ अक्तूबर, १९२४ ][१]

भाई घनश्यामदासजी,

आपके पत्र मिलते रहते हैं। जबलपुरके मामलेसे मैं घबराता नहीं हूँ। मैंने जो आत्म-प्रायश्चित करनेकी मेरी शक्ति थी वह कर लिया, इसलिए मैं शान्त रह सकता हूँ। फलका अधिकार हमको नहीं है, यह तो ईश्वरके ही हाथमें है। मेरा स्वास्थ्य ठीक होनेसे कई अग्रगण्य नेताओंको साथ लेकर दौरा करनेका मेरा इरादा तो है ही, सबसे पहले मैं कोहाट जाना चाहता हूँ। सम्भव है कि मैं ८ दिनमें तैयार हो जाऊँगा।

समय आनेपर आपकी सब भाँतिकी सहाय मैं माँग लूँगा।

आपके लोगोंसे मुझे यहाँ खूब सहाय मिल रही है।

रुपये आप जमनालालजीको या तो आश्रम साबरमतीको भेजने की कृपा करें।

आपका,
मोहनदास गांधी

मूल पत्र ( सी० डब्ल्यू० ६०३८ ) से।

सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला

  1. उपवास और कोहाट यात्रा के उल्लेखसे यह स्पष्ट है कि यह पत्र १९२४ में लिखा गया था।