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१८९. एन्ड्रयूजके साथ बातचीत

दिल्ली
[ बुधवार, १५ अक्तूबर, १९२४ ][१]

सुबह भागवतका पाठ हो जानेके बाद श्री एन्ड्रयूजको बुलाया गया। ...एन्ड्रयूज एक भजन गुनगुनाते आये और...ऊपर आकर बापूजीसे बोले: आज मैं आपको ऐसा भजन सुनाना चाहता हूँ जो आपने कभी न सुना होगा। बाइबिलमें एक फौजी अधिकारी ईसा-मसीहको अपने घरके एक बीमार आदमीको नीरोग करनेकी प्रार्थना करता है। ईसा -मसीह उसके घर जानेको कहते हैं। वह जवाब देता है---मैं बड़ा अधम हूँ, मैं उसके लायक नहीं हूँ। आप सिर्फ अपने श्री-मुखसे इतना कह दीजिए कि वह अच्छा हो जायेगा और वह जरूर नोरोग हो जायेगा। यह प्रसंग है।

इतनी प्रस्तावनाके बाद उन्होंने अपना भजन गाया। उसका भाव तुलसीदासजीके--

मम हृदय भवन प्रभु तोरा।
तहूँ आय बसे बहु चोरा॥
कह तुलसिदास सुनु रामा।
लूटहिं तस्कर तव धामा॥
चिन्ता यह मोहि अपारा।
अपजस नहिं होइ तुम्हारा॥

इस भजनसे बहुत मिलता-जुलता था। उसकी कुछ कड़ियाँ सुनिए---[२]

आपके प्रिय भजनोंसे यह कितना मिलता है! 'कहकर एन्ड्रयूज रुके। बापूजीने कहा---

मैंने इसे सुना है। मैंने यह १८९३ में सुना था। तब मैं दक्षिण आफ्रिकामें[३] ईसाइयोंके अनेक सम्प्रदायोंके लोगोंसे मिलता था। हर रविवार को उनके गिरजामें जाकर प्रार्थनामें शरीक होता था। उस समय इसे सुना याद पड़ता है।

फिर वे उन ईसाई मित्रोंके संस्मरण सुनाने लगे। फिर बोले:

पर आपको जो ऊपर बुलाया था वह दूसरे ही कामसे। मैं चाहता हूँ कि कांग्रेसका सदस्य होने के लिए कताईकी शर्त के बारेमें आप मेरे सब विचार सुन लें।

  1. साधन-सूत्रमें दी गई लेखन-तिथिके अनुसार।
  2. अंग्रेजी भजनकी ये पंक्तियाँ यहाँ नहीं दी जा रही हैं।
  3. देखिए 'आत्मकथा', भाग २, अध्याय ११।