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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कल 'यंग इंडिया' में मेरा लेख[१] आपको अच्छा नहीं लगा। पर मैं कहता हूँ कि मेरी दलील लाजवाब है। आपको वह ठीक नहीं दिखाई देती, क्योंकि आप इस बातको भूल जाते हैं कि उसके अन्तमें मैंने लिखा है कि यह दलील उन लोगों के लिए है जो देशके लिए ऐच्छिक कातना आवश्यक समझते हों। उन्हें तो कांग्रेस के सदस्योंके लिए आवश्यक २,००० गज सूत कातनेकी शर्त जरूर माननी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति यह कहता है कि मैं अपनी मरजीसे कातूँगा तो उसे कातने की शर्त पर सदस्य बनानेवाले मण्डलका सभासद बननेमें कोई झिझक न होनी चाहिए। इसीसे मैंने यह कहा है कि जो देश सैनिक-शिक्षाको अत्यन्त महत्त्वकी बात मानता है---जैसे कि फ्रांस---वह सैनिक-शिक्षाको अपनी राष्ट्रीय सभा के सभासद होने की शर्तके तौरपर रख सकता है। यदि भारतवर्षमें कताईकी शक्ति, उपयोगिता और आवश्यकता मानी जाती हो तो फिर कताईको सभासद होनेकी शर्त मान लेना चाहिए।

आपकी दलील बहुत कमजोर है। आपका फ्रांसकी सैनिक-शिक्षासे तुलना करना मुझे भयानक मालूम होता है। मैं तो फौजमें भरती होनेके बदले जेलमें जाना पसन्द करूँगा--जिस तरह रसेल गया था और जिस तरह कि रोलाँने देश छोड़ दिया था।

हाँ, मैं भी जाना पसन्द करूँगा। पर इससे क्या? जिसके दिलमें यह बात खटकती हो वह जरूर उसका विरोध करे और जोखिम उठाये। परन्तु यदि आम तौरपर सारा देश सैनिक-शिक्षा शुरू करनेका कायल हो तो फिर उसके लिए कानून बना देनेमें क्या बाधा हो सकती है?

नहीं, आपकी यह कमजोर उपमा मुझे ठीक नहीं मालूम होती। इससे अधिक अच्छी उपमा लेनी चाहिए थी। अमेरिकाके मद्यपान-निषेधकी उपमा आप ले सकते थे। अमेरिकामें जब ८० फीसदी लोगोंने शराब छोड़नेकी तैयारी दिखाई तभी कानून बनाया जा सका। आप भी एक अखिल भारतीय कताई-मण्डल खोलिए और जब ८० फीसदी लोग कातने लग जायें तब अपनी शर्त रखिए। आज तो आप घोड़ेके पीछे गाड़ी रखनेके बदले गाड़ीके पीछे घोड़ा रखते हैं।

नहीं, मैं तो बिलकुल न्यायकी बात करता हूँ। किसी मण्डलको अपने सभासदोंसे किसी बात के कराने का हक है या नहीं? भले यह शर्त किसीको न पटती हो किन्तु इसलिए यह कहना तो ठीक नहीं है कि इस शर्तके रखे जानेका हक ही नहीं है।

अमेरिकामें कानून होनेके पहले सबको शराब पीनेका हक था। आज भी कानूनको रद करके शराब मँगानेका हक उन्हें है। मेरा सवाल यह है कि कांग्रेसमें लोकमतका प्रतिबिम्ब पड़ता है या मुट्ठी-भर लोगोंका ही मत व्यक्त होता है? कांग्रेस एक महामण्डल रहेगी या एक छोटी-सी समिति बन जायेगी?

  1. देखिए "कताई सदस्यता", १६-१०-१९२४। ऐसा जान पड़ता है कि गांधीजीने यंग इंडिया में प्रकाशित होनेसे पूर्व यह लेख श्री एन्ड्रयूजको दिखाया था।