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एन्ड्रयूजके साथ बातचीत

महामण्डल ही रहेगी। आप मेरे अनुभवको गलत कर सकते हैं, पर यदि एक बार आप इस बातको स्वीकार कर लें कि कांग्रेसको अपने सदस्योंपर पाबन्दी लगानेका अधिकार है तो फिर मैं सब बातें साबित कर दूँगा।

आप कांग्रेसको एक टोली न बना दें, उसे तो राष्ट्रकी एक स्वेच्छा नियोजित संस्था ही बनाये रखना चाहिए।

आपको कांग्रेसकी ठीक-ठीक कल्पना नहीं है। आज तो वह एक अनिश्चित, अव्यवस्थित मण्डल है। उसके संविधानसे अधिक बातें उसमें आ जाती हैं। यदि कांग्रेस राष्ट्रकी सच्ची प्रतिनिधि संस्था बनना चाहती हो तो उसका संविधान अधिक जीवनदायी, अधिक सच्चा और राष्ट्रकी आवश्यकताका अधिक द्योतक होना चाहिए। संख्याकी कुछ जरूरत नहीं। मैंने तो जब चार आना फीस रखवाई तब ऐसी आशा रखी थी कि कांग्रेस एक विशाल संस्था बनेगी, लेकिन उसके अनुसार काम करनेवाले कार्यकर्त्ता न निकले। आज हमारा देश आलसियों और प्रमादियोंका देश हो गया है। यह मैं उन मूक गरीबोंकी बात नहीं कर रहा हूँ, जिन्हें गुलामीने कुचल दिया है; बल्कि समझदार और ज्यादा बोलनेवालोंपर मैं यह कथन घटाना चाहता हूँ। इन सबको मैं दूसरे किस उपायसे राष्ट्र-कार्यमें लगा सकता हूँ? दूसरे किस तरीकेसे कांग्रेस एक कार्य-परायण संस्था हो सकती है? २,००० गज कातनेकी फीस रखने के प्रस्तावसे मुझे आशा है कि यह चीज बन सकेगी। एक कहेगा 'मैं कुल्हाड़ी लेकर काटूँगा' दूसरा कहेगा 'मैं कपड़ा सीऊँगा' और तीसरा कोई और बात कहेगा तो इसका परिणाम कुछ न निकलेगा। मैं सबको एक चीजपर एकाग्र करके कुछ नतीजा निकालना चाहता हूँ।

मुझे डर है कि आप सूत कातने और खादी पहननेको एक नया धर्म बना देंगे। अमुक महाशय खादी पहनते हैं या विलायती कपड़ा, इससे मेरा क्या वास्ता? मुझे तो इस बातसे काम है कि वह आदमी कैसा है। ईसामसीहने भी कहा है कि मनुष्यका बाहरी आचार नहीं, हृदय देखो।

ईसाई और हिन्दू आदर्शमें भेद है।

आप तो यह भी कहेंगे कि अमुक प्रकारका भोजन करो तो आध्यात्मिकता बढ़ेगी। मैं ऐसा बिलकुल नहीं समझता। डरहमके बिशप वेस्टकोट जैसे सज्जनको लीजिए। उन्होंने तो शराब भी पी है और मांस भी खाया है । पर क्या वे आध्यात्मिक नहीं थे?

आप एक उदाहरणसे सामान्य नियम साबित करना चाहते हैं। यह नहीं हो सकता। आप सर्व-साधारणसे यह नहीं कह सकते कि जो चाहे सो खाओ, मन आये सो पियो और यह मानते रहो कि हमारा हृदय पवित्र है।

मैं फिर अपनी मूल आपत्तिपर आता हूँ। कानून बनानेके पहले अमेरिकामें जितने उपाय किये गये उतने यहाँ किये जा रहे हैं?