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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं तो रोज उपाय किया ही करता हूँ। आजकी स्थिति चार वर्षके प्रयत्नका फल है। आप यदि कांग्रेसके प्रस्तावोंको देखेंगे तो पता चलेगा कि मैं जो प्रस्ताव करना चाहता हूँ वह कातनेकी आवश्यकताकी मूल स्वीकृतिका परिणाम है।

जब आप जेलमें गये तब भी वह तो स्वीकृत ही था?

जब मैं जेल गया तब मूल प्रस्ताव रद नहीं हो गया था।

जबतक आप अमेरिकाके तरीकोंसे काम न लेंगे, तबतक आपका प्रयोग सफल नहीं हो सकता।

अमेरिकाकी हालत यहाँसे भिन्न है। वहाँ तो पहले से ही शराबखोरी प्रचलित थी। उन्हें यह समझानेकी जरूरत थी कि शराब न पीओ। वहाँ उन्हें ऐसा काम करना था जो वहाँ तबतक हुआ ही नहीं था। यहाँ तो सिर्फ इतनी ही बात है कि लोग उस बातको करें जिसे उन्होंने बहुत असेंतक किया है और जिसे वे कुछ सालोंसे भूल गये हैं। और दूसरी बात यह है कि यहाँ तो--

नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥

नाश क्यों नहीं--है। हम सबकी शक्तियाँ भिन्न-भिन्न प्रकारकी हैं। हो सकता है कि हमें इतना जरूरी काम हो कि आधा घंटा न निकाल सकें। मैं इन महादेवको ही देखता हूँ। ये आधी रातको सूत कातते हैं अथवा मुहम्मद-अली जैसे भी जब आधी रातको चरखा कातते हैं तब मेरे मनमें आता है कि इसके क्या मानी हैं?

इन लोगोंको यदि ऐसे बेवक्त कातना पड़ता है तो यह उनकी व्यवस्था और समय-प्रबन्धकी खामीको सूचित करता है, और कुछ नहीं।

आधे घंटे की बात तो एक ओर रही। जबसे आपने सूतपर एकाग्रता शुरू की है तबसे दूसरी तमाम बातें भुला दी गई हैं। इस खादीके ही काममें इतनी सारी शक्ति खर्च हो जाती है कि नशीली चीजों और शराबके निषेधको तो सब भूल ही गये हैं।

मैंने तो एक ऐसा ऐक्य पोषक कार्यक्रम बनाया है जो सबकी समझ में आ जाये। इसमें दूसरे उपयोगी कार्योंका निषेध नहीं है। शराबकी दुकानपर पहरा रखनेकी बात तो सिर्फ हिंसा-काण्ड होनेके डरसे ही छोड़ देनी पड़ी है, खादीके कामके कारण नहीं; और दूसरी बात यह कि खादीपर जोर देना जितना जरूरी है उतना दूसरे कामोंपर नहीं। इसका कारण यह है कि सब लोग इस बातको मानते हैं शराब न पीनी चाहिए। इसके लिए लोगोंको नया पाठ पढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। स्वराज्य होनेपर भी कितने ही शराब पीनेवाले तो होंगे ही। उनका सवाल तो स्वराज्य प्राप्त होनेके बाद हाथमें लेना होगा।

क्या अफीम छोड़ देनेके लिए भारी आन्दोलन खड़ा करनेकी जरूरत नहीं है? क्या देश इसके महत्त्वको समझ गया है?

हाँ, मैं मानता हूँ कि समझ गया है।