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एन्ड्रयूज के साथ बातचीत

मिलोंमें काम करनेवाली स्त्रियाँ अपने बच्चों को अफीम खिलाती हैं। आप इस बातको जानते हैं?

हाँ, पर इससे यह न कहिए कि अफीमके दुर्व्यसनकी जड़ जम गई है और देश उसे बढ़ने दे रहा है; और बच्चोंको अफीम न खिलानेके प्रस्तावमें तो मिलोंमें काम करनेवालोंमें शिक्षा-प्रचार करनेका सवाल है, दवा-दारूका सवाल है, स्त्रियोंको मिलोंमें कितने समयतक काम करने देना चाहिए---यह सवाल है।

मुझे तो यही चीज बहुत खटकती है कि जब आपने अस्पृश्यता, हिन्दू-मुस्लिम एकता और खादीका त्रिविध कार्यक्रम रचा तब आप मद्य-निषेधको भूल हो गये।

ना, भूल नहीं गया। बात यह है कि देशको इस विषयमें नये सिरेसे कुछ बताना बाकी नहीं है।

अजी, लोग अफीम-निषेध-सम्बन्धी साहित्यमें दिलचस्पी लें और लेते रहें, वह भी असम्भव हो गया है।

सो तो यदि आप और मैं दक्षिण और पूर्व आफ्रिकाके सम्बन्धमें लिखना बन्द कर देंगे तो लोग उनमें भी दिलचस्पी लेना छोड़ देंगे। यहाँ तो बड़े बेढब लोगोंको समझाना है। पर आप इस बातको भूलते हैं कि मद्य-निषेधका काम आज भी हो रहा है। जहाँ-जहाँ खादीकी जड़ जमी है, वहाँ-वहाँ उसके साथ यह शुद्धि-कार्य भी शुरू हो गया है। बोरसद, रामेसरा, बारडोलीमें जाकर यदि आप देखेंगे तो आपको इसका पता लगेगा कि वहाँ क्या-क्या हो रहा है। खादी केन्द्रके आसपास शराब- बन्दी तथा दूसरे तमाम आत्म-शुद्धि के कार्य भी हो रहे हैं।

पर यह बात मुझे नहीं जँचती कि आप खादी पहनने या सूत कातनेको एक धर्म-कार्य बना दें। लोग खादी न पहननेवाले और न कातनेवाले लोगोंका बहिष्कार करेंगे।

हाँ, धर्म-कार्य तो यह अवश्य रहेगा। क्या आपको ऐसा लगता है कि हरएक भारतवासी यदि इसे धर्म-कार्य न बनाये तो वह देशका कोई दूसरा काम करेगा? पर इसका यह मतलब नहीं कि खादी न पहननेवालोंका बहिष्कार किया जाये। हम खादी न पहननेवालेके गले मिलें, उसके साथ प्रेम करें और प्रेम-पूर्वक यदि उसे समझा सकें तो खादी पहननेके लिए समझायें---निन्दा करके हरगिज नहीं। मैं तो यह आशा रखता हूँ कि न पहननेवालेका बहिष्कार या उसपर अत्याचार न होगा। ऐसे अत्याचार न हों इसीलिए तो मैंने २१ दिनतक उपवास किया। अब भी लोग न समझेंगे? किसी भी काममें यदि बहिष्कारकी जरूरत पड़े तो वह सिर्फ एक ही किस्मका हो सकता है--उसके जरिये किसी तरह की सेवा न लें या कोई लाभ न उठायें। मैं चाहूँगा कि शराबी का ऐसा बहिष्कार किया जाये। पर खादी न पहननेवाले या न कातनेवाले के साथ हरगिज नहीं। क्योंकि शराब पीना जिस तरहका पाप है, विलायती कपड़े पहनना वैसा नहीं।

आपके इस कथनसे मेरे दिलको बड़ी शान्ति मिली। आपके इस स्पष्टीकरणसे मुझे बड़ा सन्तोष हुआ। पर खादीको नैतिक योग्यताकी कसौटी बना देना मुझे अच्छा