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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं लगता। एक मित्र मुझे लिखते हैं कि मैंने खादी पहनना छोड़ दिया है, क्योंकि वह भले आदमी कहलानेका एक सस्ता साधन हो गया है।

यह उस मित्रकी भूल है। कोई यदि पाखण्ड करे तो क्या इससे मैं उस बातको करना छोड़ दूँ जो मुझे अच्छी लगती है। यह ऐसी बात हुई कि यदि कोई सत्यका ढोंग करे तो मैं झूठ बोलने लगूँ।

पर क्या आप खादीकी परिभाषामें से 'शुद्ध' और 'अशुद्ध' ये शब्द नहीं निकाल सकते?

कपड़ेको जरूर 'शुद्ध' 'अशुद्ध' कहूँगा। भारतवासी के शरीरपर विदेशी कपड़ा 'अशुद्ध' होगा। यदि वह विलायतमें हो तो वहाँ 'अशुद्ध' न मानूँगा। परन्तु अशुद्ध कपड़ेसे मनुष्य अशुद्ध नहीं हो सकता। उसी प्रकार शुद्ध कपड़ेसे अशुद्ध जीवन शुद्ध नहीं माना जा सकता। शुद्ध कपड़ेसे---खादीसे जो आर्थिक लाभ है वह तो जरूर होगा। इसीसे वेश्या भी शुद्ध खादी पहन सकती है और उस हदतक देशमें आनेवाला विदेशी कपड़ा रोक सकती है।

आप विदेशी कपड़े को जो अशुद्ध कहते हैं, यह मेरी समझमें नहीं आता।

सो मैं जानता हूँ। हमारा यह मतभेद भले ही बना रहे। दिल्लीके मैदानकी हवा इकट्ठी करके शिमलामें रहनेवालोंके लिए भेजें तो वह उनके लिए अशुद्ध होगी। विदेशी वस्त्र इस अर्थमें और इसी तरह अशुद्ध हैं।

पर यह मेरी समझमें नहीं आता। बाकी दूसरी बहुत-सी चीजोंके आपके स्पष्टीकरणसे मैं बड़ा प्रसन्न हुआ।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, १९-१०-१९२४

१९०. गंगाबहन वैद्यके लिए पुस्तकोंके सम्बन्धमें टिप्पणी[१]

[ १५ अक्तूबर, १९२४ के पश्चात् ]

पूज्य गंगाबहन के लिए
तुलसीदासकी 'रामायण'
'योगवाशिष्ठ 'का वैराग्य प्रकरण
'भागवत' का एकादश स्कंध
'मणिरत्नमाला'
जयकृष्ण व्यास कृत 'पंचीकरण'
'रायचन्द भाईना लेखो'
  1. १५ अक्तूबर के पत्रमें गांधीजीने गंगावनसे पूछा कि उनका "अभ्यास कहाँतक पहुँचा है?" ऐसा अनुमान है कि उन्होंने यह पत्र अपने पत्रका उत्तर मिलने के बाद लिखा होगा।