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कताई सदस्यता
('गीताजी' का गहरा अध्ययन )
कठवल्ली उपनिषद्'
'पातंजल योगसूत्र'

'मणिरत्नमाला' बहुत करके आश्रममें ही है। यह तुलसीदासकी [ रचनाओंका संग्रह ] है और उसीका गुजराती अनुवाद है। है तो छोटी-सी, परन्तु बहुत अच्छी है। बम्बईमें तो मिलती ही है। यहाँ उसको ढूँढ़ना; न मिले तो देवदाससे कहना। वह बम्बईसे लेकर भेज देगा।

मूल गुजराती ( सी० डब्ल्यू० ६०९७ ए० ) से।

सौजन्य: गंगाबहन वैद्य

१९१. कताई सदस्यता?

कताईको कांग्रेसकी सदस्यताकी शर्त बनानेके मेरे प्रस्तावके बारेमें जो आपत्ति सुनने में आई है, उसका सारांश यह है: "त्यागकी भावनासे स्वेच्छापूर्वक कताई करना तो बहुत ठीक; परन्तु उसे सदस्यताकी शर्त बनाना संतापकारी है।" मुझे कहना पड़ता है कि इस आपत्तिको सुनकर मैं दंग रह जाता हूँ, क्योंकि आलोचकोंका आक्षेप कताईपर नहीं, बल्कि इस बातपर है कि वह एक प्रतिबन्ध है, बंधनरूप है। पर ऐसा क्यों होना चाहिए? यदि पैसेको इसकी शर्त बनाया जा सकता है अर्थात् धनका प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है तो फिर कामको इसकी शर्त क्यों नहीं बनाया जा सकता? क्या स्वयं कुछ शारीरिक श्रम करनेकी बनिस्बत पैसे दे देना ज्यादा सम्माननीय है? क्या किसी मद्यपान-निषेधक संस्थामें हरएक सदस्य के लिए मद्य-त्यागका बिलकुल अनिवार्य होना संतापकारी है? क्या किसी जहाजरानी संस्था में हरएक सदस्यसे जहाजरानीकी कुछ योग्यता रखने की अपेक्षा करना संतापकारी है? या उदाहरण के लिए, फ्रांसमें जहाँ युद्ध-कौशल राष्ट्रीय अस्तित्वके लिए आवश्यक समझा जाता है, हरएक सदस्य के लिए शस्त्र विद्याका ज्ञान लाजिमी होना संतापकारी बात है? यदि इन तमाम उदाहरणोंमें पूर्वोक्त कसौटियोंको रखना संतापकारी नहीं है तो फिर भारतकी इस राष्ट्रीय संस्थामें कताई और खादी के पहनावेको, जो एक राष्ट्रीय आवश्यकता है, मताधिकारकी पात्रता या दूसरे शब्दोंमें सदस्यताकी शर्त रखना क्योंकर संतापकारी हो सकता है? क्या यह कताई और खादीके व्यापक प्रचारका और लोगोंको इसका महत्त्व समझानेका सबसे आसान तरीका नहीं है? हाँ, यह बात सच है कि मेरी दलील सिर्फ उन लोगोंके लिए है जो इस बातको परम आवश्यक मानते हैं कि जहाँतक वस्त्रोंका सम्बन्ध है, भारतको स्वावलम्बी होना चाहिए और सो भी मुख्यतः चरखे और हाथ करघे के द्वारा।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १६-१०-१९२४