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ख्वाजा हसन निजामीके साथ बातचीत

और मेरे मित्रोंको ऊपर बताये गये उद्देश्यसे कोहाट जानेकी अनुमति देंगे या नहीं तो मैं आपका कृतज्ञ होऊँगा।

भवदीय,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्र ( एस० एन० १५९१२ ) की फोटो नकलसे तथा यंग इंडिया, ३१-१०-१९२४ से भी।

१९५. ख्वाजा हसन निजामीके साथ बातचीत

[ १६ अक्तूबर, १९२४ के आसपास ] [१]

तब गांधीजी बोले:

मुझे कहना चाहिए कि आपका यह लेख मैंने भी पढ़ा है और मुझे भी वह ठीक नहीं लगा। इसका कारण है। आपने आलोचना की सो तो भले की, लेकिन आपने तो पूरे [ एकता-] सम्मेलनका ही मजाक उड़ाया है। आलोचना जिस वृत्तिसे करनी चाहिए, उस वृत्तिसे आपने नहीं की। इसमें कुछ ऐसा भाव झलकता है, जैसे आपको एकता ही पसन्द न हो और यह सम्मेलन हुआ, यह बात ही न रुची हो। आलोचना करनेमें कोई बुराई नहीं है---जरूर करें। पर इतना तो हमें स्वीकार करना ही चाहिए कि जो लोग वहाँ इकट्ठे हुए थे, वे कोई शुभ कार्य करनेके लिए ही एकत्र हुए थे और उन्होंने उसे करनेका सच्चा प्रयत्न भी किया। लेकिन, आपने तो केवल हँसी-मजाकका ढँग अपनाया और सो भी कैसे अखबारमें? 'मुबल्लिग' में---जिसके पृष्ठ अभी भी जहरसे भरे होते हैं, जिसका ढंग अभीतक नहीं बदला है। क्या आप किसी दूसरे अखबारमें नहीं लिख सकते थे? आप 'यंग इंडिया' में लिख सकते थे? आप सम्मेलनके शुभ उद्देश्यको तो स्वीकार करते! लेकिन आपने यह लेख ऐसे अखबारको दे दिया जो जहरीली और विरोधी बातें ही लिखता है। इससे किसी-किसी के मनमें ऐसा खयाल आ सकता है कि ख्वाजा साहब कहीं एकताके भी तो विरोधी नहीं हैं।

आप अब्दुल कादर जिलानीकी ही बात कर रहे हैं न?[२]जेलमें मैंने भी इनका किस्सा पढ़ा था। जब वे बच्चे थे, तब एक बार उनके सफरपर जाते समय उनकी माँने उन्हें कुछ अशर्फियाँ दी थीं। वे बालक थे, इसलिए उन्होंने अशर्फियाँ उनके कुरते में ही सीकर रख दी थीं। साथ ही उन्हें एक सीख भी दी थी कि

  1. महादेव देसाईकी रिपोर्टके अनुसार यह बातचीत गांधीजीका उपवास शुरू होनेके बाद पाँचवें सप्ताह में हुई थी।
  2. बातचीत के दौरान ख्वाजा हसन निजामीने बताया था कि हजरत गौस या अब्दुल कादर जिलानीने नेक पड़ौसीका व्यवहार करके किस प्रकार एक उद्दण्ड पड़ौसीको मुसलमान बना लिया था।