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पत्र: सी० एफ० एन्ड्रयूजको

आदमी जंगली माना जायेगा। मुझे अकसर ऐसा लगता है कि ऐसे लोगों के लेख पढ़े जानेका बहिष्कार होना चाहिए।

अगर हम प्राथमिक शिक्षाके सम्बन्धमें यह प्रथम और आवश्यक कदम उठा लें तो बहुत सारे खर्चसे बच जायेंगे, इतना ही नहीं, बल्कि हम बालकोंकी आयुमें वृद्धि करेंगे, क्योंकि इस तरह हम उनके विकासमें वृद्धि करेंगे।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ( शिक्षा-अंक ), खण्ड १, संख्या ७, २६-१०-१९२४

२०३. सन्देश: ट्रान्सवालके भारतीयोंको[१]


२० अक्तूबर, १९२४

आशा है, ट्रान्सवालके भारतीय और इसी तरह संघके दूसरे भागोंके भारतीय भी कष्ट उठाकर दक्षिण आफ्रिकामें अपने सम्मानपूर्ण अस्तित्व के लिए अन्ततक संघर्ष करेंगे और कष्ट कितना ही बड़ा क्यों न हो उसकी परवाह नहीं करेंगे।

अंग्रेजी प्रति ( एस० एन० ९९९६ ) की माइक्रोफिल्मसे।

२०४. पत्र: सी० एफ० एन्ड्रयूजको

२० अक्तूबर, १९२४

परमप्रिय चार्ली,

मैंने आज बड़ो दादाको लिखा है। आज मुझे हर क्षण तुम्हारी याद आती रही। अहा, कैसा है तुम्हारा प्रेम!

मेरा लेख आज डाकमें डाला जा रहा है। लेख बहुत लम्बा है, इसलिए तारसे नहीं भेजा जा सकता।

'केयर टेकर' का लड़का आज पहलेसे अच्छा है। सरोजिनी फिर बीमार हो गई हैं। लीलामणिको अब भी बुखार है। कृष्टोदास बिलकुल स्वस्थ है। बेचारा मणिलाल! उसे जितना जल्दी हो सके, दक्षिण आफ्रिका लौट जाना है। इसलिए बहुत सम्भव है कि वह तुमसे मिले बिना ही रवाना हो जाये। स्वास्थ्यकी तो वह जीती-जागती तसवीर है। कैलनबेक[२]उसके साथ आते-आते रह गये।

हार्दिक स्नेह सहित,

तुम्हारा,
मोहन

अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० २६१४ ) की फोटो-नकलसे।

  1. गांधीजीने यह सन्देश इस्माइल अहमद नामक अपने एक अनुगामीके पत्रके उत्तरमें भेजा था। श्री अहमद सूरतसे ट्रान्सवाल जा रहे थे।
  2. गांधीजीके दक्षिण आफ्रिकाके साथी।