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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या आपके मनमें इसका कोई उदाहरण है?

हाँ, है। ऑस्कर वाइल्डको ही लो। उनके विषयमें मैं इसलिए कुछ कह सकता हूँ कि जिन दिनों उनकी चर्चा बहुत गरम थी, उन दिनों मैं इंग्लैंडमें ही था।

मगर मुझे तो बताया गया है कि ऑस्कर वाइल्ड आधुनिक कालकी महानतम साहित्यिक विभूतियोंमें से थे।

हाँ, और यही तो मेरी भी परेशानीका कारण है। वाइल्डने बाह्य रूपोंमें ही कलाकी चरम परिणति देखी और इसलिए वे अनैतिकताको भी कलात्मक सौन्दर्य प्रदान करनेमें सफल हो गये। सच्ची कला तो वही है जो आत्म-दर्शनमें सहायक हो। जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, मैं तो देखता हूँ कि अपने आत्म-दर्शन के लिए बाह्य रूपोंका कोई सहारा लिये बिना भी मेरा काम चल सकता है। इसलिए, मैं अपने बारेमें यह दावा कर सकता हूँ कि मेरे जीवनमें सचमुच पर्याप्त कला है, यद्यपि जिन्हें तुम कला-कृतियाँ कहते हो, उन चीजोंको तुम मेरे आस-पास शायद न देख सको। मेरे कमरेकी दीवारें बिलकुल सादी, सूनी हो सकती हैं और हो सकता है, मैं अपने सिरपर कोई साया भी नहीं रहने दूँ ताकि दृष्टि ऊपर उठानेपर अनन्त सौन्दर्यका वितान फैलाये तारक मण्डित आकाशको देख सकूँ। ऊपर तारोंसे जगमगाते इस आकाशकी ओर दृष्टि डालनेपर में जिस विराट् दृश्यको देखता हूँ, वैसे विराट् दृश्यके दर्शन मुझे किस कला कृतिमें हो सकते हैं? लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि जिन चीजोंको सामान्यतया कला-कृतियाँ माना जाता है, उन्हें मैं कोई महत्त्व ही नहीं देता; हाँ, यह अवश्य है कि व्यक्तिगत रूपसे मैं ऐसा महसूस करता हूँ कि प्रकृतिके चिरन्तन सौन्दर्य-प्रतीकोंकी तुलनामें ये कृतियाँ कितनी अधूरी हैं। मनुष्यकी इन कला-कृतियोंका महत्त्व उसी सीमातक है जिस सीमातक ये आत्मा के अन्तर्दर्शनमें सहायक हैं।

लेकिन कलाकार तो बाह्य सौन्दर्यके माध्यमते सत्यके दर्शन और उसकी प्राप्तिका दावा करते हैं। क्या इस तरह सत्यको देखना और पाना सम्भव है?

मैं इसी बातको उलटकर कहना चाहूँगा। मैं सत्यमें और सत्यके माध्यमसे सौन्दर्यको देखता और प्राप्त करता हूँ। समस्त सत्य और केवल सच्चे विचार ही नहीं, बल्कि सत्यपरक चित्र अथवा गीत भी अतीव सुन्दर होते हैं। लोग सामान्यतया सत्यमें सौन्दर्य के दर्शन नहीं कर पाते; साधारण लोग सत्यसे आँख चुराते हैं और इसलिए वे उसमें निहित सौन्दर्यको भी नहीं देख पाते। जिस दिन मनुष्य सत्यमें सौन्दर्य देखने लगेगा, उसी दिन सच्ची कलाका जन्म होगा।

किन्तु, क्या सत्यको सौन्दर्यसे और सौन्दर्यको सत्यसे अलग करके नहीं देखा जा सकता?

मैं यह जानना चाहूँगा कि सौन्दर्य दरअसल है क्या। लोग आम तौरपर इस शब्दसे जो-कुछ समझते हैं, यदि सौन्दर्य वही है तो दोनोंमें बड़ा अन्तर है। क्या यह जरूरी है कि कोई सुघड़ आकृतिवाली महिला सुन्दर ही होती है?

हाँ, वह सुन्दर तो होगी ही।