हो सकता है, इन सबको समाप्त कर देना पड़े; लेकिन मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहूँगा। मानव हितका विचार सर्वोपरि होना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि यन्त्र मनुष्यको पंगु बना दें। उदाहरण के लिए, मैं इस नियमके कुछ उचित और युक्तिसंगत अपवाद भी रखूँगा। सिलाईकी सिंगर मशीनको ही लो। यह चन्द उपयोगी आविष्कारोंमें से है और इस यन्त्र के साथ एक रोचक कहानी भी जुड़ी हुई है। सिंगर देखते कि उनकी पत्नी सीने और बखियानेका ऊबानेवाला काम करती रहती है और उसके प्रति प्रेमके कारण उन्होंने इस यन्त्रका आविष्कार कर डाला, ताकि वह गैर-जरूरी मेहनत से बच सके। किन्तु, इस तरह उसने न केवल अपनी पत्नीकी, बल्कि इस यन्त्रको खरीदनेमें समर्थ हर आदमीकी मेहनत बचा ली।
लेकिन, उस हालतमें तो सिलाईकी सिंगर मशीनोंके निर्माणके लिए कारखाना खोलनेकी भी जरूरत होगी और उस कारखानेमें सामान्य ढंगके शक्ति चालित यन्त्र भी होंगे ही।
हाँ, होंगे। लेकिन समाजवादमें मेरा इतना विश्वास तो है ही कि कह सकूँ कि ऐसे कारखानोंका या तो राष्ट्रीयकरण कर दिया जाये या उन्हें राज्यके स्वामित्व में रखा जाये। चाहिए यह कि ये कारखाने अत्यन्त आदर्श और आकर्षक ढंगसे चलाये जायें, मुनाफाखोरी के लिए नहीं, बल्कि मानव-समाजके हितके लिए चलाये जायें। इसमें प्रेरणा लोभकी नहीं, प्रेमकी होनी चाहिए। मैं जो चाहता हूँ वह यह कि श्रमिकोंको जिन स्थितियोंमें काम करना पड़ता है, उन स्थितियोंको बदला जाये। धनके लिए यह पागलपन-भरी आपा-धापी बन्द होनी चाहिए और मजदूरोंको आश्वस्त कर देना चाहिए कि उन्हें न केवल जीवन-निर्वाहके लायक मजदूरी मिलेगी, बल्कि प्रतिदिन ऐसा काम भी मिलेगा जो मात्र नीरस श्रम ही नहीं होगा। ऐसी स्थिति होनेपर यन्त्र से जितनी सहायता राज्य अथवा यन्त्रके स्वामीको मिलेगी उतनी ही सहायता यन्त्र चलानेवालेको भी मिलेगी। तब आजकी पागलपन-भरी आपा-धापी बन्द हो जायेगी और मजदूर लोग (जैसा कि मैंने कहा) काम करनेकी आकर्षक और आदर्श स्थितियोंमें श्रम करेंगे। मेरे मनमें जो अपवाद हैं, उनमें से यह केवल एक है। सिलाई मशीन के आविष्कारके पीछे प्रेमकी प्रेरणा थी। व्यक्तिके हितका विचार ही सर्वोपरि है। तो इसका उद्देश्य व्यक्तिके श्रमकी बचत होना चाहिए और इसके पीछे प्रेरक तत्त्व लोभ नहीं, बल्कि सच्चा मानव-हित होना चाहिए। इस तरह, उदाहरण के लिए, मैं टेढ़े तकुएको सीधा करनेवाले यन्त्र के आविष्कारका स्वागत करनेके लिए बराबर तैयार हूँ। इससे ऐसा नहीं होगा कि लोहार लोग तकुए बनाना छोड़ देंगे। तकुएकी जरूरत तो तब भी वे ही पूरी करेंगे, लेकिन जब तकुआ खराब हो जायेगा तो उसे सीधा करनेके लिए हर कतैयेके पास अपना-अपना यन्त्र रहेगा। तात्पर्य यह कि लोभकी जगह प्रेमसे काम लेना शुरू कीजिए और फिर देखिए कि किस तरह सब कुछ अपने-आप ठीक हो जाता है।
स्पष्ट था कि इतनेसे रामचन्द्रन् सन्तुष्ट नहीं हुए थे। उन्होंने तो ऐसा समझा था कि गांधीजी यन्त्र मात्रके विरुद्ध हैं और लगता था कि उनका यह रवैया ठीक