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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी है। इसलिए वे इस सवालकी तहतक जाना चाहते थे। लेकिन काफी देर हो रही थी और अभी उन्हें अन्य अनेक सवाल पूछने थे। गांधीजी समझ गये और उन्होंने मुस्कराते हुए कहा:

गाड़ी छूट जानेकी फिक्र मत करो। तुम्हारी सारी शंकाओंका समाधान करनेके लिए तैयार हूँ। अभी तुम जितने सवाल चाहो, पूछ सकते हो। मैं उससे जरा भी नहीं थकूँगा।

अभी इन नौजवान भाईके प्रश्नोंकी सूची समाप्त नहीं हुई थी। गांधीजीसे यह आश्वासन मिल जानेके बाद कि अभी तुम जितने सवाल चाहो, पूछ सकते हो, वे बिलकुल निश्चिन्त हो गये। उन्होंने साहस बटोरकर अगला प्रश्न पूछा, जिसका सम्बन्ध विवाहकी प्रथासे था।

मैं तीसरा सवाल यह पूछना चाहूँगा कि क्या आप विवाह-प्रथा विरुद्ध हैं।

इसका उत्तर मुझे किंचित् विस्तारसे देना पड़ेगा। मानव जीवनका उद्देश्य मोक्ष है। एक हिन्दूके नाते मैं मानता हूँ कि मोक्षका अर्थ जन्म-बन्धनसे मुक्ति पाना है, शरीरके बन्धनोंको तोड़कर ईश्वरमें लीन हो जाना है। अब विवाह तो इस सर्वोपरि लक्ष्यकी सिद्धिके मार्गमें एक बाधा ही है, क्योंकि यह शरीरके बन्धनको दृढ़ करता है। इसमें ब्रह्मचर्यं बहुत सहायक है, क्योंकि यह मनुष्यको अपना जीवन पूर्णतः ईश्वरको अर्पित करनेमें सक्षम बनाता है। विवाहका उद्देश्य आम तौरपर वंशवृद्धि ही तो समझा जाता और फिर किसीको विवाह प्रथाका पक्ष-पोषण करनेकी भी क्या जरूरत है? इसका प्रचार तो स्वयं ही होता रहता है। इसके प्रसारके लिए किसी प्रचार-तन्त्रकी आवश्यकता नहीं है।

लेकिन, ब्रह्मचर्यका पक्ष-पोषण करना और हरएकको उसका उपदेश देना क्या आप अपने लिए जरूरी मानते हैं?

हाँ, जरूरी ही मानता हूँ और तब तुम शायद यह कहोगे कि इस तरह तो सृष्टिका अन्त ही हो जायेगा? लेकिन नहीं, ऐसा कोई खतरा नहीं है। इसका जो बड़े से बड़ा तर्क-संगत परिणाम होगा वह मानव-जातिका उन्मूलन नहीं, बल्कि उसका एक उच्चतर धरातलपर पहुँच जाना ही होगा।

लेकिन, क्या यह वांछनीय नहीं है कि कवि, कलाकार और महान् प्रतिभासे युक्त व्यक्ति अपनी सन्तानके माध्यमसे भावी पीढ़ी के लिए अपनी विरासत छोड़ जाये?

बिलकुल नहीं। उसे हर हालतमें अपनी सन्तानकी अपेक्षा शिष्य अधिक संख्यामें मिल जायेंगे और उन शिष्योंके माध्यमसे वह दुनियाको अपनी प्रतिभाका दान जितनी अच्छी तरह दे सकता है, उतनी अच्छी तरह और किसी तरीकेसे नहीं दे सकता। यह आत्मासे आत्माका परिणय होगा; शिष्य होंगे परिणयकी सन्तान। यह एक प्रकारकी अलौकिक प्रजोत्पत्ति होगी। तो विवाहकी प्रथाकी रक्षाके लिए हमें कोई चिन्ता ही नहीं करनी चाहिए, वह तो अपने ही बल-बूतेपर जीवित रहेगी। इसका परिणाम विकास नहीं, पुनरावृत्ति ही होगा, क्योंकि विवाह-व्यापारमें वासना ही सबसे प्रधान हो गई है।