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जी० रामचन्द्रन्के साथ बातचीत

प्रस्थान करनेसे पूर्व उन्हें फिर गांधीजीसे बातचीत करनेका सौभाग्य मिला। इस बार बातचीत तो कम ही हुई, लेकिन उसके परिणामस्वरूप रामचन्द्रन्ने आखिरकार गांधीजीका दृष्टिकोण स्वीकार कर लिया।

तो बापूजी, मुख्य चीज सत्य ही है? सौन्दर्य और सत्य एक ही चीजके अलग-अलग पक्ष नहीं हैं---यही न?

सत्य ही वह वस्तु है, जिसकी खोज सबसे पहले करनी चाहिए और फिर सौन्दर्य और शिवत्वकी प्राप्ति तो तुम्हें उसके साथ अपने-आप हो जायेगी। मेरे लेखे, ईसामसीह एक श्रेष्ठ कलाकार थे, क्योंकि उन्होंने सत्यका साक्षात्कार किया और उसे अभिव्यक्ति दी। ऐसे ही मुहम्मद साहब भी थे और उनकी 'कुरान' अरबी साहित्यकी सबसे सुन्दर, सबसे पूर्ण कृति है---कमसे-कम विद्वान् लोग तो ऐसा ही कहते हैं। चूँकि दोनोंने सर्वप्रथम सत्यको पानेका प्रयत्न किया, इसलिए स्वभावतः उनकी अभिव्यक्तिमें प्रांजलता आ गई; मगर न तो ईसामसीहने और न मुहम्मद साहबने ही कलापर कुछ लिखा। इसी सत्य और सुन्दरके लिए मैं लालायित हूँ, इसीके लिए जीता हूँ और इसीके लिए मरना चाहता हूँ।

अगर आप सिंगर सिलाई मशीन और अपनी तकलीको अपवाद बनाते हैं तो फिर ऐस अपवादोंका अन्त कहाँ होगा?

वहाँ, जहाँ यन्त्र व्यक्तिके लिए सहायक न रहकर उसकी वैयक्तिकतापर आक्रमण करने लगेंगे। यन्त्रको मनुष्यके हाथ-पैरोंको निकम्मा नहीं बनाने देना चाहिए।

लेकिन, बापूजी, इस समय मेरे मनमें व्यावहारिक पक्षका खयाल नहीं था। एक आदर्शके रूपमें क्या आप यन्त्र-मात्रका परित्याग नहीं चाहेंगे? जब आप सिलाई मशीनको अपवाद बना रहे हैं तब तो आपको साइकिल, मोटर गाड़ी आदिको भी अपवाद बनाना पड़ेगा?

नहीं, इन्हें अपवाद नहीं बनाऊँगा। क्योंकि इनसे मनुष्यकी कोई बुनियादी आवश्यकता पूरी नहीं होती। कारण, मोटरगाड़ीकी तेज रफ्तारसे दूरी तय करना मनुष्यकी कोई बुनियादी आवश्यकता नहीं है। इसके विपरीत सूई जीवनके लिए एक आवश्यक वस्तु है--बुनियादी आवश्यकता है। लेकिन आदर्शके रूपमें तो मैं तमाम यन्त्रोंका त्याग करने को कहूँगा---ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार मैं इस शरीरको, जो मोक्षके मार्गमें सहायक नहीं हैं, त्यागकर आत्माकी मुक्तिके लिए प्रयत्न करना चाहूँगा। इस दृष्टिकोणसे तो मैं यन्त्र मात्रका त्याग कर देना चाहूँगा, लेकिन यन्त्र रहेंगे तब भी, क्योंकि वे भी शरीर की तरह ही अनिवार्य हैं। जैसा कि मैंने बताया, शरीर तो स्वयं ही एक विशुद्धतम यन्त्र है, लेकिन यदि यह आत्माके उर्ध्वगमनमें बाधक है तो इसका त्याग करना होगा।

लेकिन यह एक अनिवार्य बुराई क्यों है? क्या आखिरकार कुछ कलाकार सौन्दर्यमें और सौन्दर्यके माध्यमसे सत्यको नहीं देख सकते?

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