हाँ, कुछ कलाकार देख सकते हैं। लेकिन मुझे तो यहाँ भी करोड़ों लोगोंको ध्यानमें रखकर सोचना है; और करोड़ों लोगोंको हम सौन्दर्यबोधका ऐसा प्रशिक्षण नहीं दे सकते जिससे वे सौन्दर्यमें सत्यको देख सकें। पहले उन्हें सत्यके दर्शन कराओ और बादमें वे सौन्दर्यके दर्शन भी जरूर कर लेंगे। उड़ीसाकी बात सोच-सोचकर मैं सोते-जागते हमेशा परेशान रहता हूँ। उन लाखों-करोड़ों क्षुधित लोगोंके लिए जो कुछ लाभदायक हो सकता है, वह मेरे लिए सुन्दर भी है। पहले हम जीवन के प्राथमिक और आवश्यक उपादान जुटा दें, फिर जीवनका लालित्य और सौन्दर्य तो उन्हें अपने-आप प्राप्त हो जायेगा।
यंग इंडिया, १३-११-१९२४ और २०-११-१९२४
२१३. पत्र: वसुमती पण्डितको
[ २२ अक्तूबर, १९२४ ][१]
तुम्हें महादेव अथवा रामदास लिखता ही होगा, ऐसा सोचकर मैंने पत्र लिखनेमें ढिलाई की है। लिखनेकी बात तो मनमें थी ही। मेरा स्वास्थ्य ठीक रहता है। साढ़े तीन सेर दूध पी जाता हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि यह मात्रा कम करनी पड़ेगी। मैं थोड़ा घूम-फिर भी लेता हूँ। यहाँ ३१ तारीखतक तो रहना ही है। उसके बाद कोहाट जाना पड़ेगा, ऐसा मानता हूँ। यह बात वाइसरायकी अनुमतिपर निर्भर करती है। आशा है, तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा होगा। क्या पाखाना नियमित रूपसे हो जाता है? मणिलाल दक्षिण आफ्रिकासे यहाँ आ गया है।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र ( सी० डब्ल्यू० ४५८ ) से।
सौजन्य: वसुमती पण्डित।
- ↑ ढाककी मुहरसे।