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२१४. पत्र: डाह्याभाई एम० पटेलको

आश्विन बदी ९ [ २२ अक्तूबर, १९२४ ][१]

भाईश्री डाह्याभाई,

आपका पत्र मिला। आपकी पत्रिका तो मैं भूल गया हूँ। फिर भेज दीजिए। सन्देश यह है:

सत्यपर दृढ़ रहें। अपने प्रत्येक कार्यमें शान्ति बरतें। अपने और देशकी खातिर चरखा चलायें, खादी पहनें, हिन्दू और मुसलमान मिल-जुलकर रहें, हिन्दू अस्पृश्योंको अपना भाई समझें और उनका स्पर्श करनेमें संकोच न करें। शराब पीनेवाले शराबका त्याग करें; अन्य व्यसन करनेवाले भी अपने-अपने व्यसन छोड़ दें, यह हम सबका कर्त्तव्य है और यदि हम ऐसा करेंगे तो हमें स्वराज्य जल्दसे-जल्द मिलेगा। 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' में फिलहाल जो कुछ प्रकाशित होता है, उसका मुझे भान है। मुझे लगता है कि वह सब निर्दोष है। ये अनुभव असामान्य नहीं हैं और सबके लिए उपयोगी हैं। इनके द्वारा अहिंसा और तपका पाठ मिलता है, जिसे सबको सीखना है। उनमें कुछ हदतक मेरी प्रशंसा आ जाती है, लेकिन वह अनिवार्य है और जबतक मैं सम्पादन-कार्य फिरसे अपने हाथमें न लूँ, तबतक क्षम्य ही है। तथापि आपका दृष्टिकोण भी विचारणीय है। इस प्रशंसाके प्रति मुझे निर्लेप रहना चाहिए।

बापूके आशीर्वाद

भाई डाह्याभाई
ताल्लुका समिति
धोलका
बरास्ता अहमदाबाद

गुजराती पत्र ( सी० डब्ल्यू० २६९० ) से।

सौजन्य: डाह्याभाई एम० पटेल

  1. डाककी मुहरसे।