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२२५. पत्र: देवदास गांधीको

दीपावली [ २७ अक्तूबर, १९२४ ][१]

चि० देवदास,

तुम्हारा पत्र मिला। श्री कैलनबैकका तार नहीं मिला। तुमने आजके पत्र में जो कुछ लिखा है, वही तुम्हारे पिछले पत्रमें भी था। तुम 'यंग इंडिया' के लिए जो टिप्पणियाँ चाहते हो, उन्हें भेजने के लिए मैं अभी भी तैयार नहीं हो पाया हूँ। मेरा ज्यादा समय तो शरीरकी सार-सँभालमें ही चला जाता है। पाँच बार खाता हूँ, जिसका मतलब हुआ ढाई घंटे। १ घंटा सोना, १ घंटा मालिश कराना, २ घंटे घूमना, आधा घंटा नहाना---इस तरह सात घंटे तो इसी प्रपंचमें निकल जाते हैं। फिर यह मान्यता भी है कि रातको कोई काम नहीं करूँ, उसे मैं आज पहली बार तोड़ रहा हूँ। सवेरेके सात बजेतक तो बिस्तरमें ही पड़ा रहता हूँ। अब बताओ कि कामके लिए कितने घंटे बचे? २१ दिन उपवासके पश्चात् मेरी स्थिति बालकों-जैसी हो गई जानो। मुझे अपनी देख-भाल इसी तरह होने देनी पड़ रही है जिस तरह बच्चोंकी की जाती है। इसके बावजूद उपवास मुझे प्रिय है, उसके बिना जीना दुश्वार हो जाता।

बापूके आशीर्वाद

देवदास
सत्याग्रह आश्रम

गुजराती पत्र ( जी० एन० २१२७ ) की फोटो-नकलसे।

२२६. तार: अब्दुल बारीको[२]

[ २७ अक्तूबर, १९२४ या उसके पश्चात् ]

मौलाना अब्दुलबारी साहब
फिरंगी महल, लखनऊ

आपका तार मिला। कुछ विश्वसनीय गवाह यहाँ भेजे जाने चाहिए।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०४९२) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. डाककी मुहरसे।
  2. यह अब्दुल बारीके २७ अक्तूबरके तारके जवाबमें भेजा गया था। इस तारमें अब्दुल बारीने लखनऊमें हिन्दू-मुस्लिम तनावसे सम्बन्धित एक मामलेके बारेमें गवाही लेनेकी जरूरत बताई थी और गांधीजीसे पूछा था कि क्या वे गवाही लेना चाहेंगे।