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२२७. तार: वाइसरायके निजी सचिवको[१]

[ २८ अक्तूबर, १९२४ ]

तारके लिए धन्यवाद। यद्यपि मैं वाइसराय महोदय के निर्णयको माने लेता हूँ फिर भी मैं यह कहना चाहता हूँ कि रावलपिंडीमें पड़े हुए हिन्दू शरणार्थियोंको कोहाट जानेके लिए तबतक उत्साहित करनेका मेरा कोई इरादा नहीं था जबतक कोहाटके मुलमान प्रसन्नतापूर्वक उनका स्वागत करनेके लिए तैयार और उत्सुक न हों। यदि मुझे कोहाट जानेकी अनुमति दे दी जाती तो मेरा विचार यह था कि अपने मुसलमान मित्रोंकी सहायतासे मैं मुसलमानोंके साथ अपने मित्रतापूर्ण सम्बन्धोंका, जो मेरा विश्वास है कि मेरे और इनके बीच हैं, उपयोग एक प्रेमपूर्ण समझौता करवानेके लिए करता। मेरा खयाल यह था और अब भी है कि कोहाटमें दोनों जातियोंमें हार्दिक एकताकी स्थापना अधिकारियोंकी अपेक्षा गैर-सरकारी लोग अधिक अच्छी तरह करा सकते हैं। अधिकारी चुपचाप कई गैर-सरकारी तरीकोंसे इस काममें निस्सन्देह सहायता दे सकते हैं। किन्तु मेरा अबतकका सतत अनुभव यह है कि अधिकारी लोग दोनों पक्षोंको एक-दूसरेपर प्रहार करनेसे तो रोक सकते हैं, पर पारस्परिक शत्रुताकी भावना दूर करके उनमें फिरसे मित्रता नहीं करा सकते। चूँकि मैंने लोगोंको यह विश्वास दिलाया था कि मैं जल्दी ही कोहाट जाऊँगा इसलिए यदि वाइसराय महोदयकी अनिच्छा न हो तो मैं यह पत्र-व्यवहार प्रकाशित करना चाहता हूँ।

गांधी

अंग्रेजी प्रति ( एस० एन० १५९१२ ) की फोटो-नकल तथा यंग इंडिया, ३१-१०-१९२४ से भी।

  1. निजी सचिवके २८ अक्तूबरके तारके उत्तरमें। तारमें कहा गया था कि लॉर्ड रीडिंगकी रायमें गांधीजीका कोहाट जाना समझदारीका काम नहीं होगा।