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सन्देश: संयुक्त प्रान्त राजनीतिक परिषद्, गोरखपुरको

विस्मरण ही विपत्ति है और उसका स्मरण ही सुख हैं।[१] तुम्हें वही सुख प्राप्त हो। तुम्हें हजीरा जानेका विचार छोड़ना नहीं है। अगर वहाँ पाखाना साफ न होता हो तो हजीरा जानेका विचार करना ही ठीक है। तुम लिखना। फिर उसीके मुताबिक व्यवस्था करूँगा।

बापूके आशीर्वाद

[ पुनश्च: ]

अगर मैं रामदासका पता अंग्रेजीमें लिखूँ तो उसके नामके साथ "स्क्वायर" जोडूँगा। लेकिन, तुम देखोगी कि आज मैंने "श्रीमती" शब्द छोड़ दिया है।

वह शब्द "निरिक्षण" नहीं, 'निरीक्षण' है।

गुजराती पत्र ( सी० डब्ल्यू० ४५९ ) से।

सौजन्य: वसुमती पण्डित

२३०. सन्देश: संयुक्त प्रान्त राजनीतिक परिषद्, गोरखपुरको[२]

दिल्ली
३० अक्तूबर, १९२४

बंगालमें सरकारने जो राजनीति अब ग्रहण की है उससे सबको दुःख हो रहा है, होना ही चाहिए। परन्तु वह दुःख राजनीतिकी अराजकताके कारण नहीं है, बल्कि उसका शीघ्र उत्तर देनेकी हमारी अशक्तिके कारण है। मुझे आशा है और मैं चाहता हूँ कि हम इस संकटके समय धैर्यका त्याग न करें। क्रोध और अधैर्यके वश होकर हम सच्चे उपायकी खोज न कर सकेंगे, ऐसा मेरा दृढ़ मन्तव्य है। अमली कार्यका उत्तर अमली कार्य ही हो सकता है। हम दावा करते हैं कि सरकारकी अशान्त नीतिका उत्तर हम शान्त नीतिसे ही दे सकते हैं। अशान्त कार्यका उत्तर शान्त कार्य से ही दे सकते हैं। यदि यह बात सत्य है तो हमें सोचना चाहिए कि हम किस तरह शान्त कार्यको कर सकते हैं। थोड़ा खयाल करके ही हम देख सकते हैं कि हमारे अमली कार्यमें बाधा डालनेवाली सबसे बड़ी वस्तु है, हिन्दू-मुसलमानके बीचमें अन्तर पड़ जाना, सर्व-साधारणको एकत्र करनेमें बाधा डालनेवाली वस्तु चरखा और खद्दरके प्रति हमारी उदासीनता और हिन्दू-जातिको नष्ट करनेवाली वस्तु अस्पृश्यता है। इस त्रिदोषको जबतक हम नहीं मिटाते तबतक मेरी अल्पमति मुझको यही

  1. मूल श्लोक इस प्रकार है:

    विपदो नैव विपदः सम्पदो नैव सम्पदः।
    विपद् विस्मरणं विष्णोः सम्पद् नारायणस्मृतिः।

  2. यह 'सरकारी अराजकताकी दवा' शीर्षंकसे छपा था।