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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहती है कि हमारे भाग्यमें सरकारी अराजकता, हमारी परतंत्रता और हमारी कंगाली बदी ही हुई है। इसलिए में कौमको कोई दूसरी सलाह नहीं दे सकता। अगर हम इन तीन कार्योंमें सफलता प्राप्त करें तो जो शक्ति हमने सन् १९२०-२१ में दिखाई थी उससे भी प्रचण्ड शक्ति आज दिखा सकते हैं और बंगालकी ही क्या, सारे भारतवर्षकी विपत्तिको हम दूर कर सकते हैं।

मोहनदास गांधी

हिन्दी नवजीवन,
२-११-१९२४

२३१. पत्र: मोतीलाल नेहरूको

दिल्ली
३० अक्तूबर, १९२४

प्रिय मोतीलालजी,

जबसे वाइसराय महोदयने यह धड़ाका किया है, मैं बराबर यही सोचता रहा हूँ कि इस परिस्थितिमें हम क्या कर सकते हैं और अपनी लाचारीके भानने मुझे बेचैन कर दिया है। यहीं हमारा निष्कर्ष है। हमें उतावली या क्रोधमें कुछ नहीं करना चाहिए। इसलिए अभी तो हमें इस तूफानको अपने सिरपर ही झेलना है। कुछ दिनोंके लिए हमें सिर्फ अपने विचार प्रकट करते रहनेसे पुराने तरीकेको फिरसे अपना लेना चाहिए और भारतका समस्त जनमत इस बातपर केन्द्रित करना चाहिए कि सरकार बिलकुल ही मनमाने तरीकोंसे काम ले रही है। इसलिए हमें इस सिद्धान्तपर ही प्रहार करना चाहिए कि सरकार असाधारण तरीकोंसे काम ले सकती है। इस उद्देश्यको ध्यानमें रखते हुए हमें सरकारसे १८१८ के विनियम ३ को भी रद करने को कहना चाहिए। अगर सरकार यह कहती हो कि सरकारको असाधारण परिस्थितियोंमें असाधारण अधिकारोंकी जरूरत होती है तो हमारा कहना यह है कि ये अधिकार वह निर्वाचित प्रतिनिधियोंकी सम्मतिसे ही प्राप्त कर सकती है। मैं जानता हूँ कि इतना कर पाना भी हमारे लिए कठिन है और यह बात मुझे बहुत खटकती है। लेकिन, अभी तो मुझे और कोई रास्ता दिखाई नहीं देता।

इतना तो जो-कुछ अखिल भारतीय पैमानेपर करना है, उसके बारेमें। अब, अगर मुझे आपका अर्थात् व्यक्तिशः आपका और स्वराज्यवादियों का साथ मिल जाये तो मैं कार्य समिति या अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीसे यह कहूँ कि वह, जिन तीन वस्तुओंकी बात हुई है, उन्हींके सम्बन्धमें जमकर प्रयत्न करे। अगर कांग्रेस सुबद्ध तथा अनुशासित हो जाये तो उसके बलपर मैं फिर सरकारकी कार्रवाईका जवाब जनताकी कार्रवाईसे देनेकी कोशिश करूँ। लेकिन, जबतक ऐसा नहीं होता, जबतक हिन्दू और मुसलमान एक मत नहीं होते और जबतक हम खादी तथा अस्पृश्यताके सम्बधमें कुछ ठोस कार्य करके नहीं दिखाते तबतक मुझे तो कारगर तरीकेसे कोई