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पत्र: मोतीलाल नेहरूको

प्रत्यक्ष कार्रवाई कर सकनेकी सम्भावना नहीं दिखाई देती। बंगालकी गिरफ्तारियोंके समयसे ही मेरे मनमें बार-बार यह विचार आ रहा है कि अगर स्वराज्यवादियोंने मेरे प्रस्तावोंका उत्साहपूर्वक समर्थन नहीं किया तो मुझे कांग्रेससे अलग हो जाना चाहिए। मैं तो बस ऐसा सुबद्ध संगठन तैयार करना चाहता हूँ जो हर पुकारपर उत्साहके साथ उठ खड़ा हो। यह संगठन चाहे जितना छोटा हो, मुझे इसकी परवाह नहीं है। दूसरी तमाम अहिंसात्मक प्रवृत्तियाँ चालू रहें। उनकी उपयोगिता मैं एक हदतक समझ सकता हूँ। लेकिन मेरा निश्चित मत है कि अगर कोई व्यक्ति एक अनुशासित और प्रभावकारी संगठन तैयार करनेकी ओर ध्यान नहीं देता तो उन प्रवृत्तियोंसे कोई लाभ होनेवाला नहीं है। मुझे यह सोच-सोचकर बड़ा दुःख और अपमानका अनुभव होता है कि आज हम सरकारकी चुनौतीका कोई कारगर जवाब नहीं दे सकते; मेरा खयाल है, आप मुझसे जो कुछ जाननेकी अपेक्षा रख सकते हैं, मैंने सब बता दिया है। मैं आपको निम्नलिखित तार भेज रहा हूँ:[१]

जब दास साहब दिल्लीसे गुजर रहे थे, उन्हें मैंने एक छोटा-सा पत्र भेजा था। आप उनसे कह दें कि मैं दिल्लीमें कुछ इस कारण नहीं पड़ा हुआ हूँ कि मुझे यहाँ से निकलने की इच्छा नहीं है। बात दरअसल यह है कि इससे पहले मैं अखबार देखता ही नहीं था। लेकिन गिरफ्तारियोंके बाद से मेरी नजरमें जो भी अखबार आते हैं, सबमें उनसे सम्बन्धित एक-एक बातको मैं बड़ी उत्सुकतासे पढ़ता और सुनता हूँ।

आप नागपुर जा सके, इस बातसे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई और यह जानकर तो और भी कि आपने दोनों पक्षोंको अपनी और मौलाना साहबकी पंचायत स्वीकार करनेको राजी कर लिया।

आशा है आप सकुशल होंगे।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी से।

सौजन्य: नारायण देसाई


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