पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/३२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२३४. पत्र: मणिबहन पटेलको

कार्तिक सुदी २ [ ३० अक्तूबर, १९२४ ][१]

चि० मणि,

तुम्हारा पत्र मिला। अधिक बार लिखो तो बहुत अच्छा।

बापूको[२] आज लिखा है। चिन्ता छोड़ देने को कहा है।

तुम फिर हजीरा जानेका विचार नहीं करोगी? पास होनेके लिए बधाई चाहिए क्या? चाहिए तो समझ लेना, बधाई दे दी। डाह्याभाई एक विषयमें[३] असफल हो गया। कोई बात नहीं। असफल होनेका अर्थ है, उस विषयमें अधिक प्रवीण बनना। असफल होनेवाले विद्यार्थी अकसर निराश हो जाते हैं। यह भूल है। जो आलसी हों या जिनकी नजर नौकरीपर हो वही निराश हो सकते हैं। जो अध्ययनशील हैं उनके लिए तो असफलता अधिक प्रयत्नका सुअवसर होती है।

बापूके आशीर्वाद

चि० मणिबहन
मार्फत--वल्लभभाई पटेल
खमासा चौकी, अहमदाबाद
[ गुजरातीसे ]
बापुना पत्रो ४--मणिबहेन पटेलने

२३५. दो दृश्य

जब मैं १९२१ में पुरी गया था, वहाँ मुझे कई ऐसी चीजें देखनेको मिलीं, जिन्हें मैं आसानीसे भूल नहीं सकता। लेकिन, उनमें से दो ऐसी थीं, जिन्हें मैं कभी नहीं भूल सकता। एकका खयाल तो मेरे मन में दिन-रात बना रहता है।

उन दिनों पुरीमें एक बड़े परोपकारी पुलिस सुपरिटेंडेंट थे। वे एक अनाथालय चलाते थे। उन्होंने मुझे वह अनाथालय दिखाया। उसमें बहुत-से स्वस्थ, प्रसन्न और हँसमुख बच्चे थे। वे तरह-तरहके कामोंमें लगे हुए थे। कोई चटाई बुन रहा था तो कोई टोकरी बना रहा था, कोई कात रहा था तो कोई कपड़ा बुन रहा था। सुपरिंटेंडेंटने मुझे बताया कि वे सबके सब अकाल पीड़ितोंके बच्चे थे और

  1. साधन-सूत्रमें तिथि १० नवम्बर, १९२४ दी गई है। लेकिन कार्तिक सुदी २, ३० अक्तूबर, १९२४ को पड़ी थी।
  2. सरदार वल्लभभाई पटेल, मणिबहनके पिता।
  3. गुजरात विद्यापीठको स्नातक परीक्षा।