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हितोंका संघर्ष

हम बाढ़को रोकनेके उपाय खोज सकते हैं। लेकिन उसमें वर्षों लगेंगे। हम लोगोंको खेती-बाड़ीके अच्छे तरीकोंसे काम लेनेको भी प्रेरित कर सकते हैं। लेकिन, उसमें और अधिक समय लगेगा और जब हम बाढ़ोंको रोक देंगे और करोड़ों लोगोंके बीच खेतीके आधुनिक तरीकोंका प्रचार कर देंगे तब भी अगर किसान काम करना चाहेंगे तो उसके लिए उनके पास काफी समय शेष रह जायेगा। लेकिन, इन सुधारोंमें कई पीढ़ियोंका समय लग जायेगा। इस बीच करोड़ों भूखे लोग भूखके भेड़िएको अपने दरवाजोंसे दूर कैसे रखें? उत्तर है---चरखे के बलपर। लेकिन, तब समस्या यह आती है कि जो लोग काम करने को तैयार ही नहीं हैं, उनसे चरखा भी कैसे चलवाया जाये? उत्तर है---हम कार्यकर्त्ताओंके प्रयत्नोंसे, शिक्षित और अच्छे खाते-पीते लोगों द्वारा उसे अपना लेनेके जरिये। जब ऐसे हजारों लोग, जिन्हें खुद अपने लिए कताई करने की जरूरत नहीं है, प्रत्यक्ष और सच्चे उदाहरण प्रस्तुत करेंगे तो भूखे स्त्री-पुरुष भी सहज ही उनका अनुकरण करनेको प्रेरित होंगे। इसके अलावा, जब हम खुद कताई करना शुरू करेंगे तभी हमें ऐसे पर्याप्त कुशल कतैये मिल सकेंगे जो आवश्यक प्रारम्भिक प्रशिक्षण दे सकेंगे, सही ढँगके चरखे चुन सकेंगे, मरम्मत आदि कर सकेंगे; और अन्तमें, बिना कोई पारिश्रमिक लिये प्रेम और सेवा-भावसे कताई करनेके कारण खादी भी अवश्य सस्ती हो जायेगी। हम अधिक अच्छे किस्मका सूत भी कात सकेंगे। इसलिए यदि हम अपने अकाल-पीड़ित भाइयोंसे तादात्म्य स्थापित करना चाहते हैं तो हम कताई सदस्यतापर आपत्ति करनेके बजाय उसे सर्वसाधारणकी निरन्तर बढ़ती हुई कष्टकर गरीबीकी समस्याके समाधानका सबसे अचूक तरीका मानकर उसका स्वागत करेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ३१-१०-१९२४

२३६. हितोंका संघर्ष

आखिर जिसकी आशंका थी वह होकर रही। वाइसरायने जो बम विस्फोट किया है, उसका पूर्वाभास हमें अंग्रेजी अखबारोंसे मिल गया था। यह उनकी ओरसे हिन्दुओंके नव-वर्षपर बंगालको और बंगालके माध्यमसे सारे देशको दिया गया उपहार है! वाइसराय महोदयके इस कदमसे हमें कोई आश्चर्य अथवा भय नहीं होना चाहिए। रौलट अधिनियम मर चुका है, लेकिन उसके पीछे जो भावना थी, वह तो बराबर तरोताजा बनी हुई है। जबतक अंग्रेजोंके हित भारतीय हितोंके विरुद्ध हैं तबतक वैप्लविक अपराध या उनका खतरा कायम ही रहेगा और जबतक यह स्थिति बनी हुई है तबतक जवाबमें रौलट अधिनियम के नये-नये संस्करण सामने आते ही रहेंगे। अहिंसात्मक असहयोग इसका एक उपाय था। लेकिन, हममें इसे दीर्घकालतक और काफी दूरतक आजमाकर देखनेका धैर्य नहीं था। अब हम इसपर विचार करें