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हितोंका संघर्ष

सरकार सत्ताका मनमाना उपयोग करती है तो उसका मतलब यही होता है कि जनमत उसके साथ नहीं है।

देशबन्धु दासने बंगाल कौंसिलमें अपने कार्योंसे यह साफ बता दिया है कि जनमत बंगाल सरकारके साथ नहीं है। इस सरकारी मान्यताको कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने आतंकवादका कोई सिलसिला कायम कर दिया है। इस आरोपके समर्थनमें कोई प्रमाण नहीं है। आतंकवादके बलपर सर्वसाधारणके बीच चुनाव नहीं जीते जा सकते और न किसी बड़े दलको ही एक करके रखा जा सकता है। उनमें ऐसी कोई सहज खूबी अवश्य है जिसके कारण जनताने उन्हें बंगालके अपने विशाल दलका निर्विवाद अधिनायक बना रखा है। कारण स्पष्ट है। वे सत्ता जनताके लिए चाहते हैं। वे शासकोंके सामने घुटने नहीं टेकते। वे इस तिहरे भारसे बंगाल और भारतको मुक्ति दिलानेके लिए व्यग्र हैं। जिस क्षण वे कोई और राग अलापना शुरू करेंगे, ज्यों ही वे कहेंगे कि वे जनताकी आजादी नहीं चाहते, त्यों ही वह आतंक-नीति, जिसका उनपर आरोप लगाया जाता है, उनके किसी काम नहीं आयेगी और वे अपना सारा प्रभाव खो बैठेंगे। यह ठीक है कि देशबन्धुसे मेरे कुछ मतभेद हैं, किन्तु उनके कारण मैं उनकी ज्वलन्त देशभक्ति या महान् त्यागकी ओरसे अपनी आँखें बन्द नहीं कर सकता। उन्हें अपने देशसे उतना ही प्रेम है जितना कि हममें से अच्छेसे-अच्छे व्यक्तिको हो सकता है। जो लोग उनके दाहिने हाथका काम करते थे, उन्हें उनसे अलग कर दिया गया है। वे सबके सब बहुत प्रतिष्ठित लोग हैं। उनमें जनताका विश्वास है। उन्हें यह लाभ क्यों नहीं मिलना चाहिए कि उन- पर सामान्य रीतिके अनुसार अदालतमें खुला मुकदमा चलाया जाये? ऐसे लोगोंको असाधारण अधिकारोंके अधीन मनमाने तौरपर गिरफ्तार करना वर्तमान शासक-प्रणालीकी बुराईको सबसे अच्छी तरह खोलकर रख देता है। मुट्ठी भर लोगोंका करोड़ों लोगोंके बीच संगीनों, गोला-बारूद और असाधारण अधिकारोंके बलपर रहना गलत और असभ्य आचरण है। इसमें सन्देह नहीं कि इससे संख्यामें अधिक लोगोंपर अपनी सत्ताकी धाक जमानेकी उनकी क्षमता प्रकट होती है, किन्तु साथ ही यह सभ्यताकी पतली परत के नीचे छिपी उनकी बर्बरताका भी द्योतक है।

आज बंगालियोंकी कसौटी हो रही है। उनसे मैं आदरपूर्वक यही कहूँगा:

यदि आप निर्दोष हैं और मैं मानता हूँ कि आपमें से अधिकांश निर्दोष ही हैं, तो अगर आप अपने कारावासको सही भावनासे स्वीकार करेंगे तो उससे आपके देशका और स्वयं आपका भी कल्याण ही हो सकता है। आप कष्ट सहनके बिना स्वतन्त्रता नहीं पा सकते।

जो लोग सचमुच विप्लववादी हैं और हिंसामें विश्वास रखते हैं, उनसे मेरा यह निवेदन है:

आपके देश-प्रेमका मैं आदर करता हूँ, लेकिन साथ ही मैं कहना चाहूँगा कि आपके प्रेममें विवेक नहीं है। मेरे विचारसे भारतको हिंसा बलके नहीं, बल्कि बदलेमें अपना हाथ उठाये बिना शुद्ध कष्ट-सहनके द्वारा ही स्वतन्त्रता दिलाई जा सकती है।