पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/३३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह सबसे अचूक और सबसे जल्दी सफलता दिलानेवाला तरीका है। लेकिन, अगर आप हिंसात्मक तरीकेमें अपने विश्वासपर कायम ही रहना चाहते हैं तो मेरा अनुरोध है कि आप खुले तौरपर यह कहनेका साहस करें कि आप इस तरीकेमें विश्वास रखते हैं और उसका परिणाम, चाहे वह मृत्यु ही क्यों न हो, झेलनेकी हिम्मत दिखायें। इस तरह आप अपना साहस और ईमानदारी सिद्ध करेंगे और बहुत-से लोगोंको अनिच्छापूर्वक कष्ट सहने से बचा लेंगे।

[ अंग्रेजी से ]
यंग इंडिया, ३१-१०-१९२४

२३७. सफलताकी कुंजी[१]

[ ३१ अक्तूबर, १९२४ ]

यरवदा जेलमें कुछ उर्दू-साहित्य मेरे हाथ लग गया था। उसके द्वारा इस्लामका हार्द जानने का मुझे अपूर्व लाभ मिला। मौलाना अबुल कलाम आजादकी दी हुई पुस्तक 'हिन्दुस्तानी शिक्षक' तो मेरे पास थी ही। उसे पढ़कर और भी आगे पढ़ने की मेरी उत्सुकता बढ़ी। शुएब कुरैशीके पास जो पुस्तक मुझे पढ़ने लायक मालूम हुई, मैंने मँगा ली थीं। लेकिन मैं तो बड़ा अधीर हो उठा था; इसलिए भारतीय भाषाओंकी पुस्तकोंके लिए जेल-पुस्तकालय छानने बैठ गया। आनन्द और आश्चर्य के साथ मैंने पाया कि वहाँ उर्दू, मराठी, तमिल, कन्नड़ और गुजराती पुस्तकें भी थीं। जाहिर है कि पुस्तकें थोड़ी ही थीं, लेकिन उस समय मेरे कामके लायक पुस्तकें वहाँ मौजूद थीं। मुझे जो सूची मिली थी उसमें मुसलमान कैदियोंके लिए कुछ उर्दू धार्मिक पाठ्य-पुस्तकें भी थीं। मैंने उनको माँग लिया। वे पुस्तकें लाहौरकी किसी संस्थाकी तरफसे प्रकाशित की गई थीं। मैं बड़ा प्रसन्न हुआ। मेरे मनमें विचार आया कि इससे मेरा उर्दूका ही ज्ञान न बढ़ेगा, बल्कि इन पाठ्य-पुस्तकोंके द्वारा मुझे यह भी देखनेको मिलेगा कि मुसलमान बालकों को क्या-क्या सिखाया जाता है। दूसरी पाठ्य- पुस्तकमें कितने ही बड़े उपयोगी और शिक्षाप्रद पाठ हैं। एक पाठमें पैगम्बर साहब के कुछ जीवन-प्रसंगोंका वर्णन है। पैगम्बर साहबकी नम्रता, उदारता, शत्रु-मित्र के प्रति सम-भाव, क्षमाशीलता, समयकी पाबन्दी और ईश्वरके डरका परिचय देनेवाली---मनुष्यको भला और धर्मनिष्ठ बनानेवाले सब गुणोंको दिखानेवाली कथाएँ उसमें हैं। उदाहरणके तौरपर, जो यहूदी साहूकार पैगम्बर साहबको गाली देने और उनकी निन्दा करनेके लिए गया था, उसके साथ उनका बर्ताव लीजिए। हजरत उमरको लगा कि उसमें मुर्शिदका बड़ा अपमान हो रहा है। वे उसे सहन न कर सके। लेकिन पैगम्बर साहबने, अपने मरीदको बुरा-भला कहकर कहा कि उसकी असली

  1. मूल अंग्रेजी लेख मुहम्मद अलीके साप्ताहिक कॉमरेडमें प्रकाशित हुआ था। इसके अन्तिम दो अनुच्छेदोंका मिलान अमृतबाजार पत्रिका द्वारा कॉमरेडसे उद्धृत मूल अंग्रेजी पाठसे कर लिया गया है।