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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुसलमान हो, पारसी हो या ईसाई, यहूदी हो या दूसरी कोई कौम हो, लेकिन हिन्दुस्तानी कहलानेवाले सब लोगोंमें परस्पर सहिष्णुताका होना ही एकता और स्वातन्त्र्यकी एकमात्र शर्त है। हिन्दुओंको और मुसलमानोंको यह समझाने के लिए ही 'कॉमरेड' और 'हमदर्द' फिर शुरू हुए हैं। 'कॉमरेड' और 'हमदर्द' को शुरू करके मौलाना मुहम्मद अली अपने सिरपर अवश्य ही एक बड़ी जिम्मेदारी ले रहे हैं। किन्तु वे खुदासे डरनेवाले व्यक्ति हैं; उनको खुदापर भरोसा है। ईश्वर, हमें जो प्रगाढ़ अन्धकार लगता है, उसमें प्रकाश दिखाता है। इसलिए उनकी प्रार्थनाके साथ मैं भी ईश्वरसे यह प्रार्थना करूँगा कि उनके कार्यको सफलता मिले, उनकी कलमसे हमेशा शत्रु और मित्र, सबके लिए उचित शब्द ही निकलें, वे खुद और उनके सहायकगण कभी क्रोध या आवेशमें आकर कुछ न लिखें। 'कॉमरेड' और 'हमदर्द' में लिखा एक-एक शब्द अपने देश और उसके द्वारा मानव-जातिके लिए कल्याणकारी सिद्ध हो और इस अनेक धर्मवाले देशमें उनके दोनों अखबार विभिन्न धर्मावलम्बियों के बीच शान्ति और सद्भावना बढ़ायें।

अली भाइयों और मेरे दरम्यान जो दिली दोस्ती है, उसे जाहिर करनेका एक भी मौका मैंने नहीं गँवाया है। वे पक्के मुसलमान होनेका दावा करते हैं और हैं भी; मैं पक्का हिन्दू होने का दावा करता हूँ; किन्तु इस बातसे हमारे दरम्यान सच्चा प्रेम और पूर्ण विश्वास कायम रहनेमें कभी कोई बाधा नहीं पड़ी। यदि ऐसी दोस्ती कुछ मुसलमानों और हिन्दुओंके बीच रह सकती है तो फिर गणितके सीधेसे नियमके अनुसार करोड़ों हिन्दुओं और करोड़ों मुसलमान भी, यदि वे चाहें तो, ऐसी दोस्ती अपने बीच पैदा कर सकते हैं। मुझे भरोसा है कि 'कॉमरेड' और 'हमदर्द' हर तरीकेसे और मुख्यतः इस्लामकी श्रेष्ठतम और उच्चतम विशेषताओंको पेश करके, इसी प्रकारकी दोस्तीको बढ़ावा देंगे। ईश्वर उनके इस प्रयास में शीघ्र ही पूर्ण सफलता प्रदान करे।

हिन्दी नवजीवन, २-११-१९२४

२३८. सन्देश: गुजराती पत्रकारोंको[१]

मुझे लगता है कि हमारे देशमें जिसको दूसरा कोई काम नहीं मिलता वह यदि थोड़ा भी लिखना जानता हो तो अखबारनवीसी करने लग जाता है। इन दिनों मेरे सिर उत्तर भारतके बहुत-से उर्दू अखबार पढ़नेका काम आ पड़ा है। उनसे मेरे उपर्युक्त विचारकी बहुत पुष्टि होती है। गुजरातीके अखबारोंके सम्बन्धमें भी मेरा अनुभव कुछ ऐसा ही है। ऐसी हालतमें अखबारोंके सम्पादक एकत्र होकर यदि अपनी लेखनीपर कुछ अंकुश रखना तय कर सकें तो यह अभीष्ट है। इसमें दो मत हो ही नहीं सकते। सम्पादकका पद आजीविका के लिए नहीं, बल्कि केवल लोक-सेवा के

  1. १. अहमदाबादमें गुजराती पत्रकारोंका एक सम्मेलन होनेवाला था। यह सन्देश उसीके लिए दिया गया था।