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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं। पर अब यह साबित हुआ है कि हम उसका प्रयोग करना नहीं जानते---इसीसे मैं दुःखी हो रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि पाठकोंको भी इस बातका इतना ही दुःख हो। एकताके सूत्रमें बँधे और शुद्ध बन चुके स्वावलम्बी भारतको कौन दुःख दे सकता है? उसे तो दूसरा कुछ करनेकी जरूरत ही नहीं रहेगी।

पर यह सीधी-सी बात मैं किसे, किस तरह समझाऊँ? मैं तो मुसलमानको गले लगाकर, अस्पृश्यको स्पृश्य समझकर तथा सूत कातकर रास्ता दिखानेकी कोशिश कर रहा हूँ। मुझे तनिक भी सन्देह नहीं कि बंगालके दुःखका निवारण इसीमें है, हिन्दुस्तानका छुटकारा इसीमें है।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, २-११-१९२४

२४०. टिप्पणी

गुजरात नहीं हारा

इस बार तो आन्ध्र प्रदेश गुजरातको मात नहीं दे पाया, लेकिन इसमें गुजरातके लिए प्रसन्न होने की कोई बात नहीं है। "जहाँ पेड़ नहीं होते, वहाँ एरण्ड ही पेड़ माना जाता है", इस न्यायसे गुजरात प्रथम स्थानका उपभोग कर रहा है। गुजरातको सच्ची शक्तिका विकास करना है और इसके लिए १,७०० कर्तये ही पर्याप्त नहीं हैं। गुजरातकी नब्बे लाखकी आबादीमें से कताई-यज्ञ करनेवाले केवल १,७०० लोग निकलें, यह काफी नहीं है। ये तो दो प्रतिशत भी नहीं हुए। कमसे -कम दस हजार कतैये हों, तब कहीं लगभग दस प्रतिशत होंगे। मैं जानता हूँ कि कार्यकर्त्ता इसके लिए बहुत प्रयत्न कर रहे हैं। अतः, किसीको दोष नहीं दिया जा सकता। यदि इसमें दोष किसीका है तो वह हमारी परिस्थितिका है। इस दोषको समझना हमारा कर्त्तव्य है। यदि हम उसे समझ लेंगे तो उसे दूर करनेका विशेष प्रयत्न करेंगे। हम नियमित रूपसे कातनेवाले लोगोंको समझ लेना चाहिए कि केवल इसीमें ---खादीके प्रचारमें और विदेशी कपड़ेके त्यागमें ही---हमारा आर्थिक और इसलिए राजनैतिक उद्धार निहित है। तभी हम इस अमूल्य काममें दृढ़तासे लगे रहेंगे और अपनी लगनसे औरोंको भी प्रभावित कर सकेंगे।

कातनेवाले भाइयों और बहनोंको यह भी जान लेना चाहिए कि मासकी १५ तारीखतक तो अखिल भारतीय खादी बोर्डको सूत मिल जाना चाहिए। १५ तारीख तो सभी स्थानोंसे केन्द्रमें सूत पहुँच जानेकी तिथि है। किन्तु, कतैयोंको अपना हिसाब महीनेकी आखिरी तारीखको ही कर लेना चाहिए और इसी कारण हमने अंग्रेजी मास अपनाया है, क्योंकि बहुत-से प्रान्तोंमें अलग-अलग संवत्सर चलते हैं और मुसलमान भाई हिसाब-किताब हिजरी सन्के अनुसार रखते हैं। अतः अंग्रेजी मासके अनुसार हिसाब करनेमें ही आसानी है। गुजरातको तो अपना सब सूत इकट्ठा करके