पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/३३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२४६. तार: जफर अली खाँको[१]

[ ५ नवम्बर, १९२४ या उसके पश्चात् ]

मौलाना जफर अली खाँ
'जमींदार'
लाहौर

मोचॅपर वापसीका स्वागत। आशा है आप स्वस्थ होंगे। हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए ठोस कामकी आपसे उम्मीद है।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११७१२) की फोटो-नकलसे।

२४७. समयकी पाबन्दी

समग्र राष्ट्रके रूपमें हमपर आमतौरपर एक आरोप लगाया जाता है कि हम समयकी पाबन्दी नहीं रखते; साधारणतया हम समयसे पीछे रहते हैं। जो देर करता है, वह तो स्पष्ट ही समयसे पीछे रहता है; लेकिन यह कहना भी उतना ही सही है कि जो समयसे चार घंटे आगे रहता है, दरअसल वह भी समयसे पीछे ही रहता है। सो इस तरह वह दूसरी सैकड़ों बातोंकी उपेक्षा करके ही तो समयसे चार घंटे आगे हो पाता है। जब कोई ग्रामीण ट्रेन पकड़ना चाहता है तो वह निश्चित समय से घंटों पहले स्टेशन पहुँच जाता है। वह गाड़ी भले ही पकड़ ले, लेकिन बहुत-सी अन्य बातोंके सम्बन्धमें, जो शायद ज्यादा महत्त्वपूर्ण हों, वह समयसे पीछे ही होगा। हम शिक्षित लोग हर मामलेमें देर करनेके आदी हैं। हमारी सभाएँ समयपर हों, इसकी हम जरूरत ही नहीं समझते। नियत समयपर कार्यवाही शुरू न करना तो बिलकुल आम बात है। अकसर एक ही आदमीकी अनुपस्थितिको सैकड़ों और कभी-कभी तो हजारों लोगोंको प्रतीक्षा-रत रखनेका पर्याप्त कारण मान लिया जाता है। हम इतनी प्रतीक्षा कर सकते हैं, इससे प्रकट होता है कि हममें कितना अधिक धैर्य और क्षमा है। लेकिन साथ ही यह चीज हमारी प्रगतिकी दृष्टिसे बहुत अनिष्टकर है।

समयकी पाबन्दीका यही अभाव अब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके कताई-सम्बन्धी प्रस्तावको कार्यान्वित करनेके सिलसिलेमें दिखाई दे रहा है। वैसे पढ़नेमें तो यह प्रस्ताव बहुत सीधा-सादा है; लेकिन उसे कार्यान्वित करनेके लिए अखिल भारतीय खादी बोर्डको अपनी तमाम शक्ति और साधन खपाने पड़ रहे हैं। सूतको एकत्र

  1. ५ नवम्बर, १९२४ को जमींदार कार्यालयसे गांधीजीको निम्नलिखित तार मिला था: "आज मौलाना जफर अली खाँ रिहा कर दिये गये। कल शाम वे लाहौर पहुँच रहे हैं।"