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केनियाकी शिकायत

मौलाना मुहम्मद अली बड़ी उम्मीदमें हैं कि गुजरात हार जायेगा और आन्ध्र या बंगाल उनका इनाम ले जायेगा। गुजरातके खिलाफ उनके मनमें कोई भाव नहीं है। पर बेशक, वे चाहते हैं कि उनका इनाम इनमें से कोई ले और वे मानते हैं कि उचित होड़में यदि गुजरात हार भी जायेगा तो उसे कोई दुःख नहीं होगा। यदि गुजरातकी पराजयकी बदौलत कतैयोंकी संख्यामें अच्छी खासी वृद्धि हो तो उसकी यह हार उसकी जीत ही होगी। मौलाना साहब नहीं चाहते कि कोई प्रान्त संयोग-वश ही जीत जाये। बल्कि जीत सच्चे और कड़े परिश्रमके फलस्वरूप होनी चाहिए।

[ अंग्रेजी से ]
यंग इंडिया, ६-११-१९२४

२४९. केनियाकी शिकायत

एक केनियावासी भाई लिखते हैं:[१]

पत्र-लेखकने उपर्युक्त पत्र प्रकाशनार्थ नहीं, सिर्फ मेरी जानकारीके लिए लिखा है। फिर भी, उपनिवेशोंमें रहनेवाले बहुत-से भारतीयोंके मनमें ऐसे विचार उठते होंगे और यह स्वाभाविक भी है। किन्तु, तनिक ज्यादा सोचकर देखनेपर मालूम होगा कि यहाँसे याचकोंका [ उनके पास ] जाना भी स्वाभाविक ही है। राजनीतिक कष्ट तो दोनों स्थानोंमें हैं। चूँकि हिन्दुस्तानमें हमें राजनीतिक कष्ट है, इसलिए प्रवासी भारतीयोंको भी यह कष्ट भोगना ही पड़ता है। अगर हिन्दुस्तानमें यह दुःख दूर हो जाये तो विदेशोंमें भी उनका दुःख सहज ही दूर हो जाये। हिन्दुस्तानमें नेता लोग प्रवासी भारतीयोंके लिए ज्यादा नहीं करते, क्योंकि वे कर नहीं सकते। उन्हें इच्छा तो बहुत है, लेकिन लाचार आदमी क्या करे! रोगीकी खानेकी इच्छा किस कामकी? अपंगको अपनी दौड़नेकी इच्छा छोड़नी ही पड़ती है। भारत तो दो दृष्टियोंसे अपंग है---राजनीतिक दृष्टिसे और आर्थिक दृष्टिसे। ऐसी अपंग मातासे उसके प्रवासी पुत्र ऐसा तो नहीं कह सकते: "माँ, तुम तो मेरी कोई मदद करती नहीं और मुझसे पैसे माँगती हो---यह कैसा न्याय है?" मगर माता तो कहेगी ही: "तुमपर दुःख है, यह तो मैं जानती हूँ, लेकिन मैं ठहरी विधवा। तुम्हारी क्या मदद करूँ? फिर, मैं गरीब भी हूँ। तू चार पैसे कमानेके लिए परदेश गया है। मैं समझती हूँ, तुम्हारी रोटियोंमें मेरा भी कुछ हक-हिस्सा है। इसीलिए तुम्हारी आशा रखती हूँ।" ऐसी विचित्र स्थिति है हिन्दुस्तानकी। अपने २० वर्षके प्रवासके अनुभवसे मैंने ऐसा ही देखा है। दक्षिण आफ्रिकामें हमें हिन्दुस्तानकी ओरसे कोई मदद नहीं मिल सकती थी, फिर भी हम वहाँसे स्वदेशको पैसा भेजते थे। हमें राजनीतिक कष्ट तो अवश्य था; पर आर्थिक कष्ट नहीं था। हिन्दुस्तानमें जहाँ एक रुपया देने या खर्च करनेमें मुश्किल पड़ती है, वहाँ दक्षिण आफ्रिकामें हम पूरी गिन्नी खर्च कर सकते थे। हिन्दुस्तानसे गया कोई भी याचक हमारे पाससे खाली हाथ


२५-२०
 
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है।