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२५०. गांधीजी और स्वराज्यवादियोंका संयुक्त वक्तव्य

कलकत्ता
६ नवम्बर, १९२४

नीचे हम उस वक्तव्यका पाठ दे रहे हैं जो इसी ६ तारीखको कलकत्तामें श्री गांधी, श्री चित्तरंजन दास और पण्डित मोतीलाल नेहरूके हस्ताक्षरोंसे जारी किया गया है:

यद्यपि भारतके सभी दलोंका उद्देश्य स्वराज्य ही है, फिर भी चूँकि देश ऐसे अलग-अलग गुटोंमें बँट गया है जो विरोधी दिशाओंमें काम करते जान पड़ते हैं; चूँकि ऐसे परस्पर विरोधी कार्योंसे स्वराज्यकी दिशामें राष्ट्रकी प्रगतिमें बाधा पहुँचती हैं; चूँकि ऐसे सभी दलोंको यथासम्भव कांग्रेसके भीतर लाना और संयुक्त मंचपर खड़ा करना वांछनीय हैं; चूँकि कांग्रेस स्वयं भी दो विरोधी पक्षोंमें बँटी हुई है जिससे देश हितकी हानि हो रही है; चूँकि इस सर्वसामान्य उद्देश्यकी सिद्धिकी दृष्टिसे इन दलोंको फिरसे एक कर देना वांछनीय है; चूँकि बंगालकी सरकारने गवर्नर-जनरलकी स्वीकृतिसे वहाँ दमनकी नीति शुरू कर दी है; चूँकि नीचे हस्ताक्षर करनेवाले लोगोंकी रायमें दरअसल इस दमनका लक्ष्य किसी हिंसावादी दलको नहीं, बल्कि बंगालकी स्वराज्य पार्टीको और इस प्रकार संविधान सम्मत तथा अनुशासनबद्ध प्रवृत्तिको कुचलना है और चूँकि इन परिस्थितियोंको देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि इस दमन-नीति विरुद्ध राष्ट्रकी संयुक्त शक्ति लगा देनेके उद्देश्यसे तत्काल सभी दलोंको सहयोग देने के लिए निमन्त्रित किया जाये और उनका सहयोग प्राप्त किया जाये; इसलिए हम नीचे हस्ताक्षर करनेवाले लोग सभी दलोंके और अन्ततः बेलगाँव कांग्रेसके स्वीकारार्थ निम्नलिखित बातोंकी सिफारिश करते हैं:

कांग्रेसको राष्ट्रीय कार्यक्रमके रूपमें अपना असहयोगका कार्यक्रम स्थगित कर देना चाहिए, लेकिन जहाँतक उसका सम्बन्ध भारतके बाहर बने हुए कपड़े का इस्तेमाल करने अथवा उसे पहनने के वर्जनसे है, इस कार्यक्रमको जारी रखा जाये।

कांग्रेसको यह निश्चय भी करना चाहिए कि कांग्रेसके विभिन्न कार्योंको, जब जैसी जरूरत दिखाई दे उसके मुताबिक, कांग्रेसके अलग-अलग पक्ष करें। पर हाथ-कताई, हाथ-बुनाई और उनकी तमाम पूर्ववर्ती क्रियाओंका प्रचार और हाथ-कते सूतसे हाथ-बुनी खादीका प्रचार; विभिन्न जातियोंके बीच और विशेषकर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकताको बढ़ावा देना और हिन्दुओं द्वारा अस्पृश्यता-निवारण---इस सबके लिए कांग्रेसके भीतर मौजूद तमाम पक्ष प्रयत्न करें। पुनः उसे निश्चय करना चाहिए कि केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधानसभाओंसे सम्बन्धित कार्यको, कांग्रेसकी ओरसे और उसके एक अभिन्न अंगके रूपमें स्वराज्यवादी दल चलाये। तथा इस काम के लिए यह दल अपने नियम स्वयं बनाये तथा कोष एकत्र करने और उसकी व्यवस्था करनेका काम