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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी स्वयं करे। चूँकि अनुभवसे यही ज्ञात हुआ है कि जबतक भारतमें सब लोग सूत न कातें तबतक भारत कपड़ेकी आवश्यकताकी पूर्तिके सम्बन्धमें आत्मनिर्भर नहीं हो सकता और चूँकि हाथसे सूत कातना जनसाधारण और कांग्रेसजनोंके बीच स्पष्ट और सुदृढ़ सम्बन्ध स्थापित करनेका सर्वोत्तम और अत्यन्त ठोस तरीका है, इसलिए हाथ-कताई और हाथ कते सूतसे बनी चीजोंको लोकप्रिय बनाने के उद्देश्यसे कांग्रेसको अपने संविधानकी धारा ७ को रद करके उसके स्थानमें निम्नलिखित धारा रखनी चाहिए:

जो व्यक्ति १८ वर्षका न हो, जो राजनीतिक समारोहों और कांग्रेसके जलसोंमें अथवा कांग्रेसका कार्य करते समय हाथ-कते सूतसे हाथ-बुनी खादी न पहने और प्रति मास अपने हाथका कता अथवा बीमारी, अनिच्छा या ऐसे ही किसी अन्य कारणसे स्वयं न कात सकनेपर किसी दूसरेसे कतवाकर, २,००० गज एक-सा सूत न दे, वह किसी भी कांग्रेस कमेटी या कांग्रेस संगठनका सदस्य नहीं बन सकता।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १३-११-१९२४

२५१. भाषण: कलकत्ता नगर-निगम द्वारा दिये मानपत्रके उत्तरमें[१]

कलकत्ता
६ नवम्बर, १९२४

कलकत्ता नगर-निगम के महापौर महोदय,
पार्षदगण और बहिनो तथा भाइयो,

मैं खड़ा होकर नहीं बोल रहा हूँ, इसके लिए क्षमा करेंगे। ऐसा मैं शिष्टताके अभावके कारण नहीं, बल्कि इसलिए कर रहा हूँ कि इतने बड़े श्रोता-समुदायके सामने खड़े होकर बोलनेकी शक्ति मुझमें नहीं है। आपने जो मानपत्र भेंट किया है और उसमें जो अत्यंत ही उदार तथा स्नेहपूर्ण उद्गार व्यक्त किये हैं, उनके लिए मैं हृदयसे आपको धन्यवाद देता हूँ। इस विशाल नगरसे--इस प्रासादपुरीसे---मैं अपरिचित नहीं हूँ। नगर-कल्याण सम्बन्धी कर्त्तव्यके निर्वाहका कितना महत्त्व है, यह भी मुझे मालूम है। मुझे अकसर ऐसा लगता रहा है कि नगर-कल्याणके कार्यका क्षेत्र यद्यपि राजनीतिक कार्य जितना विशाल नहीं होता और उसमें चमक-दमक तो और भी कम होती है, फिर भी वह कुछ कम आवश्यक अथवा कम फलप्रद नहीं। मैंने बहुत बार मन-ही-मन सोचा है कि अगर मैं किसी नगर-निगमका सदस्य होऊँ तो क्या करूँगा; और वर्षों पूर्व जब मैं कलकत्ताकी गन्दी बस्तियोंमें घूमा करता था और

  1. मानपत्र टाउन हॉलमें एक विशाल जनसमुदायके समक्ष भेंट किया गया था और उसे महापौर श्री चित्तरंजन दासने पढ़ा था।