पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/३५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसे वे स्वीकार नहीं हों तो फिर मैं उन्हें अपनी जेबमें रखे रहूँगा। फिर भी, जिन वस्तुओंका त्याग नहीं किया जा सकता, उनका त्याग तो मैंने नहीं किया। अगर कोई हिन्दू मुझसे आकर कहे कि मुझे हिन्दू-मुस्लिम एकताको उद्देश्यके रूपमें नहीं रखना चाहिए तो क्या मैं उसे स्वीकार कर लूँ? उसी तरह अगर कोई सदस्यता की शर्तोंमें मिलके कपड़ोंके उपयोगकी छूट देनेको कहे तो उसे भी मैं स्वीकार नहीं कर सकता था। कारण, वैसा करके तो मैं खादीका विनाश ही कर देता।

एक समय आप ऐसा कहते थे कि किसी सहयोगी वकीलसे तो ईमानदार बूट पालिश करनेवाला अच्छा है। लेकिन आज तो आप वकीलों और श्रीमन्तोंके बननेके लिए तैयार हैं।

हाँ, आप ठीक कहते हैं। मैंने जो कहा था, वह शब्दशः ठीक था। आज असहयोग है कहाँ? अगर असहयोग पूर्ण रूपसे व्याप्त हो, अगर बूट पालिश करनेवाले जैसे लोग भी पूरा असहयोग कर रहे हों तो वे सहयोगियोंको अलग रख सकते हैं। लेकिन, मैं कोई कांग्रेसका मालिक नहीं हूँ। अगर मैं नेता होना चाहूँ तो सदस्योंके लिए अशक्य शर्तें रखकर नहीं, बल्कि सहजसाध्य शर्तें रखकर ही हो सकता हूँ। अगर झगड़ा-तकरार नहीं होता, कटुता नहीं फैली होती तो मैं अपनी गाड़ी पहले की ही तरह चलाता। लेकिन, ऐसा कुछ रहा नहीं, इसलिए मुझे लगा कि अभी मुझे चुप ही रहना चाहिए और लड़ाईकी बात भूल जानी चाहिए।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, १६-११-१९२४

२५४. भाषण: हावड़ा नगरपालिका द्वारा दिए मानपत्रके उत्तर में[१]

७ नवम्बर, १९२४

अध्यक्ष महोदय, पार्षदगण और भाइयो,

आज सायंकाल आपने जो सुन्दर मानपत्र भेंट किया है, उसका अगर लम्बा उत्तर न दूँ तो क्षमा कर दीजिए। अभी तो समयसे मेरी होड़ लगी हुई है। मुझे दिल्ली जानेके लिए डाकगाड़ी पकड़नी है। बाहर बहुत बड़ी भीड़ मेरा इन्तजार कर रही है और पता नहीं स्टेशन पहुँचनेमें मुझे कितना समय लग जायेगा। इसलिए यदि भाषण समाप्त करके मैं तुरन्त सभा-भवन छोड़ दूँ तो कृपया क्षमा कर दीजिए। इस मानपत्रके लिए और इसमें आपने मेरे बारेमें कृपापूर्वक जो उद्गार व्यक्त किये हैं उनके लिए मैं आपको हृदयसे धन्यवाद देता हूँ। इस मानपत्रका मैं जो सबसे संक्षिप्त और उपयुक्त उत्तर दे सकता हूँ वह है कलकत्ता नगर निगम द्वारा

  1. मानपत्र हावड़ा टाउन हॉलमें भेंट किया गया था।