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भेंट: एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाके प्रतिनिधिसे

भेंट किये गये मानपत्रके उत्तरमें कहीं बातोंको दुहरा देना। लेकिन यदि उसमें कुछ जोड़ना हो तो मैं आशा करता हूँ कि यह काम देशबन्धु दास कर लेंगे। मेरे कल सायंकालके भाषणसे अधिक वे जो-कुछ भी आपसे कहेंगे, उसे और नगरपालिकाके काम-काज तथा उसकी सीमाके अन्दर रहनेवाले लोगोंके कल्याणके सम्बन्धमें कहे गये उनके एक-एक वाक्यको मैं अपना ही वाक्य मानूँगा। मैं एक बार फिर आपके उद्गारों तथा आपके मानपत्रके लिए आप सबको धन्यवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि हम भारतको शीघ्र ही अपनी मनोवांछित स्थिति में देखेंगे। धन्यवाद।

[ अंग्रेजीसे ]
अमृत बाजार पत्रिका, ८-११-१९२४

२५५. भेंट: एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया के प्रतिनिधिसे[१]

कलकत्ता
७ नवम्बर, १९२४

यह पूछनेपर कि आपके और स्वराज्य पार्टीके बीच हुए समझौतेका देशपर क्या प्रभाव होगा। श्री गांधीने कहा:

अभीसे निश्चित तौरपर तो कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन मुझे आशा है कि अपरिवर्तनवादी लोग उसे हृदयसे स्वीकार कर सकेंगे और जो लोग १९२० में कर्त्तव्य मानकर कांग्रेससे अलग हो गये थे वे अब पुनः वापस आ जाना ठीक मानने लगेंगे।

श्री गांधीने यह आशा भी व्यक्त की कि इस नये परिवर्तन से खद्दरके उत्पादन में भी वृद्धि होगी।

बंगालकी स्थिति तथा विनियम ३ और विशेष अध्यादेशके अधीन की गई गिरफ्तारियोंके बारेमें पूछनेपर उन्होंने कहा:

दमनके परिणामस्वरूप भारतके राजनीतिक दलोंमें एकता पैदा होनी चाहिए, क्योंकि स्थितिका यथाशक्य ध्यानपूर्वक अध्ययन करनेके बाद भी मेरा यह विचार कायम है कि यह दमन स्वराज्य दलपर ही किया गया एक प्रहार है। दूसरे शब्दों में, यह सरकारका दृढ़तापूर्वक विरोध करनेके उस संकल्पपर प्रहार है जिसने सरकारको परेशानीमें डाल रखा है, भले ही वह विरोध कितना ही संवैधानिक क्यों न हो। यदि सभी दल मिलकर इस दमन-नीतिका स्पष्ट शब्दोंमें विरोध करें तो सरकारको इस बातका अहसास हो जायेगा कि जनमत पूरी तरह उसके विरुद्ध है। जहाँतक खुद मेरा सम्बन्ध है, मुझे बहुत खेद है कि इस कठिन समय में असहयोग या यदि अधिक सही शब्दका प्रयोग करें तो सविनय अवज्ञाके लिए उपयुक्त वातावरण नहीं है, वरना मैं समझता हूँ, बंगाल सरकारने जो तरीके अपनाये हैं वे तो ऐसे हैं कि

  1. भेंट कलकत्तासे प्रस्थान करनेसे पहले हुई थी।