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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पूर्ण अहिंसामें विश्वास रखनेवाले लोग जो भी कड़ीसे-कड़ी सीधी कार्रवाई कर सकते हैं, उन्हें करनी चाहिए थी। यह सरकारकी मनमानीका भी उत्तर होगा और विप्लववादी दलको भी यह दिखानेका एक कारगर उपाय होगा कि उसका तरीका निरर्थक है। सरकारने जैसी दमन-नीति अपनाई है उसे और विप्लववादी दलके तरीके, दोनों को ही मैं अराजकता मानता हूँ। सरकारकी कार्रवाईसे खतरेकी ज्यादा सम्भावना है, क्योंकि वह कार्रवाई अधिक संगठित रूपसे और कानूनके नामसे की जाती है। किन्तु, मैं यह स्वीकार करता हूँ कि जबतक हम आपस में ही झगड़ रहे हैं और वातावरणमें हिंसा की भावना व्याप्त है, तबतक सविनय अवज्ञा असम्भव है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हिंसाके शिकार फिलहाल हम ही बने हुए हैं। किन्तु, यदि हिन्दुओं और मुसलमानोंने अपना आपा नहीं खो दिया होता और कांग्रेसके भीतर मतभेद न होता तो मैं दिखा देता कि हिंसक तरीकों की अपेक्षा सविनय अवज्ञा लाख गुनी अधिक कारगर और कार्य-साधक है। चूँकि सविनय अवज्ञाके लिए यह आवश्यक है कि वह अहिंसात्मक हो तथा खुले तौरपर और कठोर सत्यनिष्ठासे की जाये, इसलिए यह एक ऐसा अस्त्र है जिसका उपयोग अत्यन्त प्रामाणिक व्यक्ति ही कर सकते हैं।

यह पूछने पर कि भारतमें रहनेवाले उन यूरोपीयोंका रवैया क्या होना चाहिए जिनका सरकारसे सम्बन्ध नहीं है, श्री गांधीने कहा:

मेरे विचारसे उनका रास्ता बिलकुल साफ है। जहाँतक मुझे मालूम है, अराजकतावादी गतिविधियोंका विरोध करने और उन्हें डुबानेमें सारा भारत उनसे सहयोग करेगा, किन्तु उनसे भारतीय दृष्टिकोण तथा भारतीयोंकी आकांक्षाओंको समझने की अपेक्षा की जाती है। उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे सत्ताके मनमाने प्रयोगका विरोध करनेमें भारतीयोंका साथ देंगे और भारतीयों द्वारा अपने स्वतन्त्रताके अधिकारको प्रतिष्ठित करनेके प्रयासमें उनसे सहयोग करेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
न्यू इंडिया, ८-११-१९२४

२५६. समयका मूल्य

हमारे सम्बन्धमें ऐसा कहा जाता है कि हम समयके मूल्यको नहीं जानते। इस कथनमें बहुत सत्य है। मैं जानता हूँ कि हमारे महान् नेता भी समयकी कीमत पूरी तरह नहीं समझते। कदाचित् ही कोई सभा नियत समयपर आरम्भ होती है। हजारों लोग धैर्यपूर्वक समयके अपव्ययको सहन करते हैं।

लेकिन वस्तुतः देखा जाये तो अंग्रेजी कहावतके अनुसार समय ही पैसा है, क्योंकि समयके बिना काम---मजदूरी नहीं होती और मजदूरीके बिना सम्पत्तिका निर्माण नहीं होता। खानमें दबे हुए जवाहरात की कीमत कुछ भी नहीं है। उनकी खोजमें जो समय लगता है, अर्थात् उसमें जो श्रम करना पड़ता है, उसीकी कीमत है। जितनी आसानीसे लोहा मिलता है, यदि उतनी ही आसानीसे सोना भी मिलने