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समयका मूल्य

लगे तो, यद्यपि सोना बहुत सुन्दर होता है, तथापि उसकी आज जितनी कीमत है उतनी कीमत न रहे। सूर्य की किरणें सोनेसे करोड़ों गुना ज्यादा सुन्दर हैं, लेकिन वे हमें इस देशमें जितनी चाहें उतनी मिलती हैं, इसलिए हम उनका कोई मूल्य नहीं समझते। लेकिन जहाँ सूर्यके प्रकाशका अभाव होता है, वहाँ लोग उसे प्राप्त करनेके लिए दाम देते हैं।

हमारी सभाओं की कार्यवाही समयानुसार नहीं चलती। इससे हमारा जितना समय नष्ट होता है और समयके नष्ट होनेसे समाजको जो नुकसान होता है, उसका हमें कोई भान नहीं है। किन्तु सार्वत्रिक स्वेच्छा-कताईसे हमें इस चीजकी पर्याप्त तालीम मिल रही है। जबतक प्रत्येक कातनेवाला और प्रत्येक मण्डल अपना-अपना कार्य समय पर नहीं करता तबतक हजारों और लाखों कातनेवालोंके सूतको एकत्र करना, जाँचना और वर्गो में बाँटना---यह सब असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य हो जायेगा।

गुजरात पहले नम्बरपर आता है, इससे हमें खुशीसे फूल उठनेका कोई कारण नहीं है। जहाँ बहुत थोड़ा काम होता हो, वहाँ कुछ अधिक काम करनेवाला भी छाजता है; लेकिन जबतक वह आवश्यक सीमातक नहीं पहुँच जाता तबतक उसका यह छाजना व्यर्थ है। गुजरातमें अभीतक दो हजार कातनेवाले भी नहीं तैयार हुए हैं। लेकिन यदि दो हजार भी हो जायें तो भी उनकी क्या गिनती है? हमारा उद्देश्य सबको खादीधारी बना देना है, घर-घर सूत कातनेका यज्ञ आरम्भ करवाना है। इस उद्देश्यका विचार करते हुए गुजरातके आँकड़ोंका मूल्य नगण्य प्रतीत होता है।

यदि हम इस कार्यको बहुत आगे बढ़ाना चाहते हों तो हमें समयका मूल्य समझना-सीखना ही होगा। इसीलिए मैंने सुझाव दिया है कि प्रत्येक कातनेवालेको धर्म मानकर नित्य आधा घंटा सूत कातना चाहिए। यदि उसे बिना नागा किये नित्य आधा घंटा कातना हो तो उसे पहलेसे ही समय निर्धारित कर लेना चाहिए। यदि वह ऐसा करेगा तो देखेगा कि उसका एक भी दिन बिना सूत काते नहीं जायेगा तथा वह निश्चित दिन और नियत समयपर अपना सूत, जहाँ भेजना हो, वहाँ भेज सकेगा।

इससे सबका समय बचता है। इस तरह उपसमितियाँ निश्चित दिन और निश्चित समयपर सूत इकट्ठा करके प्रान्तीय समितियोंको और प्रान्तीय समितियाँ उसे निश्चित समयपर मुख्य समितिको भेज सकती हैं। यदि ऐसा हो तो समयकी कितनी बचत हो और काममें कितनी सुविधा हो जाये?

गुजरातमें खासी व्यवस्था आती जा रही है। लेकिन अभी भी बहुत-कुछ करना बाकी है। कातनेका यह काम एक दिनके लिए अथवा एक वर्षके लिए नहीं है। इसका सम्बन्ध तो हिन्दुस्तान के अस्तित्व के साथ है। इसके बिना स्वराज्य नहीं मिल सकता और स्वराज्यकी रक्षा भी नहीं की जा सकती। यहाँ यदि कोई स्वराज्यका अर्थ आर्थिक स्वतन्त्रता करना चाहे तो भले ही करे। हमारे कार्यके लिए यह सीमित अर्थ ही पर्याप्त है। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि यदि हम आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त कर लेंगे तो और सब कुछ स्वतः ही प्राप्त हो जायेगा।