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पत्र: शुएब कुरैशीको
[ पुनश्च: ]

मैं यह माने लेता हूँ कि यदि पहले नहीं तो गुरुवारको तो तुम पिताजीके साथ बम्बई आ ही जाओगे। उसी दिन सुबह मैं वहाँ पहुँच रहा हूँ। श्रीमती नायडू कल सुबह यहाँसे प्रस्थान करेंगी।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

२६६. पत्र: शुएब कुरैशीको

१२ नवम्बर, १९२४

प्रिय शुएब,

श्रीमती नायडूने मुझे बताया है कि आजकल तुम्हारा मन बहुत खिन्न रहता है और मनुष्य तथा संसारपर से विश्वास उठ जानेके कारण तुम दोनोंसे कतराने लगे हो। यदि ऐसा हो तो यह तुम्हारे लिए उचित नहीं है। मैंने तुम्हें सदासे एक धर्मात्मा व्यक्तिके रूपमें जाना है और औरोंसे भी ऐसा ही सुना है। तुम अत्यधिक संवेदनशील हो, यह तो मैंने खुद ही देखा है। इस संवेदनशीलतापर काबू पाना बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं है। लेकिन मनकी खिन्नतापर विजय पाना उतना सहज नहीं है। पर तुम ऐसे क्यों हो गये हो? हमें तो बहुत लम्बी और विकट लड़ाई लड़नी है। अगर ईश्वरकी मर्जी हुई तो यह जल्दी भी खत्म हो सकती है। लेकिन यदि लड़ाई लम्बी और विकट ही हो तो क्या कोई सिपाही इसपर शिकवा-शिकायत कर सकता है? नहीं, उसे तो ऐसा नहीं ही करना है। यदि दूसरे लोग लड़खड़ायें तो जिसमें आस्था है, वह उसी अनुपातमें और दृढ़ होता जाता है। अतः, मैं तो तुमसे यही अपेक्षा रखता हूँ कि हमारे चारों ओर जो कमजोरियाँ और उलझनें दिखाई दे रही हैं, उनका खयाल रखते हुए तुम और भी दृढ़ बनो और अधिक संकल्पके साथ जुट जाओ। इसलिए उदासी छोड़ो। अपना हृदय मुक्त रखो।

कृष्टोदासने मुझे बताया कि तुमने अभीतक गुलबर्गा-रिपोर्ट पूरी करके लौटाई नहीं। उसे भेज दो या २० तारीखको जब मैं वहाँ आऊँ तबतक उसे तैयार कर रखना। मैं १८ तारीखको एक्सप्रेससे रवाना होनेकी उम्मीद रखता हूँ। शायद हकीम साहब और डा० अन्सारी भी मेरे साथ होंगे।

कृष्टोदास एक हफ्तेके लिए पीछे रह गया है। उसके कुटुम्बके लोग उससे मिलनेको बहुत बेकल थे। इसलिए वह चाँदपुर चला गया। वह १८ तारीखको या उससे पहले ही लौट आयेगा।