निकलना चाहिए या नहीं। मैं नहीं चाहूँगा कि कान्फ्रेंसकी खातिर आप अपना स्वास्थ्य खतरेमें डालें।
मो० क० गांधी
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
२६८. पत्र: शान्तिकुमार मोरारजीको
दिल्ली
कार्तिक वदी १ [ १२ नवम्बर, १९२४ ][१]
चि० बहन माधुरीके विवाहका निमन्त्रण-पत्र मिला है। ईश्वर उसे और उसके पतिको दीर्घायु करे और उनकी शुभेच्छाओंको पूर्ण करे।
दादीजी तथा पिताजीको मेरा प्रणाम कहना।
मोहनदासके आशीर्वाद
गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४६९७) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य: शान्तिकुमार मोरारजी
२६९. पत्र: वसुमती पण्डितको
द्वारा डा० अन्सारी
दरियागंज
कार्तिक वदी १ [ १२ नवम्बर, १९२४ ][२]
तुम्हारा पत्र मुझे कलकत्तेमें मिला था। मैं रविवार को वापस आया। मुझको लिखे पत्रोंमें गलतियाँ हों तो कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिए। वैसे तो चाहे किसीको लिखे पत्रमें गलतियाँ रह जायें, उससे क्या फर्क पड़ता है? भाषा तो विचारका वाहन है। जबतक विचारमें दोष न हो तबतक सब कुछ ठीक ही है। विमानमें बैठा राक्षस वन्दनीय नहीं है। लेकिन सन्त तो खटारेमें बैठे रहनेपर भी वन्दनीय