पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/३६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३१
समझौता

अन्तमें, बंगालकी स्थितिका तकाजा था कि अपरिवर्तनवादी लोग स्वराज्य दलको यथाशक्ति अधिकसे-अधिक समर्थन दें।

अपरिवर्तनवादियों तथा दूसरे लोगोंने मुझसे पूछा, 'लेकिन आप कोई ऐसा वक्तव्य देनेमें कैसे शरीक हो सकते हैं, जिसमें कहा गया हो कि सरकारने यह प्रहार वास्तवमें आतंकवादियोंपर नहीं, बल्कि स्वराज्यदलपर किया है? क्या आप सरकारके साथ अन्याय नहीं कर रहे हैं?' उनके इस रवैयेसे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई और साथ ही गर्वका भी अनुभव हुआ। प्रसन्नता इसलिए कि मैंने इन प्रश्नकर्त्ताओंमें, जिस सरकारको ये नापसन्द करते हैं, उसके साथ भी न्याय करनेकी सच्ची इच्छा देखी; और गर्व इसलिए कि ये लोग मुझसे सही निर्णय और पूर्णतम न्यायकी अपेक्षा रखते हैं। मैंने उनके सामने यह स्वीकार किया कि विगत अनुभवोंके कारण मेरे मनमें सरकारके खिलाफ बहुत पूर्वग्रह है, ब्रिटेनके अखबारों और ब्रिटिश पूँजीसे निकलने-वाले भारतीय अखबारोंमें जो कुछ पढ़ा, उससे मैंने यही समझा कि सरकार स्वराज्य दलपर प्रहार करने जा रही है, बड़े-बड़े नेताओंपर हाथ साफ करना सरकारकी घोषित नीति हैं और यद्यपि यह सम्भव है कि गिरफ्तार लोगोंमें कुछ-एक अराजकतावादी प्रवृत्तिवाले लोग भी हों, फिर भी तथ्य यही है कि उनमें बहुत बड़ी तादाद स्वराज्यवादियोंकी है और अगर सरकारका यह दावा सही हो कि अराजकतावादियोंका दल बहुत बड़ा है तो बड़े ताज्जुब की बात है कि सरकारको अपना हाथ साफ करनेके लिए मुख्यतः स्वराज्यवादी लोग ही क्यों मिले। मैंने उनसे यह भी कहा कि अगर अराजकतावादियोंका कोई बहुत विस्तृत और सक्रिय संगठन है तब तो अत्यन्त उग्र प्रवृत्तिवाले लोगोंके स्वराज्य दलके अन्दर नहीं, बल्कि बाहर ही होनेकी सम्भावना है; और कहते हैं, पुलिसने रातमें जो तलाशियाँ लीं, उनमें उसे कोई हथियार वगैरह नहीं मिलें। मेरे समाधानके लिए उत्तरमें उन्होंने जो-कुछ कहा, उससे मेरे मतमें तनिक भी फर्क नहीं पड़ा और मुझे तो लगता है कि अगर मैं प्रश्नकर्त्ताओं को अपनी मान्यतासे सहमत नहीं करा पाया तो कमसे-कम इस बातकी प्रतीति तो करा ही दी कि मेरी जो भी मान्यता है उसके खासे कारण मौजूद हैं और अब यह सिद्ध करना तो सरकारका काम है कि उसके मनमें बंगालके स्वराज्य दलके खिलाफ सचमुच कोई दुरभिसन्धि नहीं थी।

लेकिन प्रस्तावके अनुसार असहयोगको स्थगित कर देनेसे व्यक्तिगत तौरपर असहयोग करनेवालोंपर कोई रोक नहीं लगेगी। उन्हें न केवल अपने-अपने मतोंपर कायम रहनेका अधिकार है, बल्कि यदि वे व्यक्तिगत असहयोग छोड़ देंगे तो यही कहा जायेगा कि उनमें कोई सत्व नहीं है। उदाहरण के लिए, असहयोग-कार्यक्रमके स्थगित कर दिये जानेका मतलब मेरे लिए यह नहीं हो सकता कि मैं सरकारको लौटाये अपने पदक फिर वापस माँग लूँ या फिरसे वकालत शुरू कर दूँ अथवा अपने बच्चोंको सरकारी स्कूलोंमें दाखिल करा दूँ। इस प्रकार असहयोग -कार्यक्रमके स्थगित कर दिये जानेसे जहाँ आस्थावान असहयोगियोंके लिए अपना असहयोग जारी रखनेकी स्वतन्त्रतामें कोई खलल नहीं पड़ेगा, वहाँ कांग्रेसके आह्वानपर एक नीतिके तौरपर