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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

असहयोग करनेवालोंको इस बातकी छूट मिल जायेगी कि यदि वे चाहें तो बिना किसी अपयश-अपवादकी आशंकाके असहयोग बन्द कर दें। इसके सिवा यदि असहयोगको स्थगित करनेकी बात मंजूर कर ली जाती है तो फिर किसी कांग्रेसीको कांग्रेसकी नीति या उसके कार्यक्रमके अंगके रूपमें असहयोगका प्रचार करनेकी छूट नहीं रह जायेगी। उलटे, यदि वह चाहे तो जबतक असहयोग स्थगित रखनेकी नीति कायम रहती है तबतक लोगोंको असहयोग न करनेके लिए जरूर कह सकता है और समझा सकता है।

फिर कताई-सदस्यताकी बात लीजिए। मैं तो खादीका और ज्यादा उपयोग तथा उत्पादन चाहता था---चाहता था कि सभी अवसरोंपर खादी ही पहनी जाये और सभी कांग्रेस-जन, यदि वे बीमारी या ऐसी ही किसी दूसरी असमर्थतासे लाचार न हों तो हर महीने कमसे-कम २,००० गज सूत अवश्य कातें। लेकिन इस शर्तको नरम बना दिया गया है और अब सिर्फ राजनीतिक समारोहोंके अवसरपर और कांग्रेसका काम करते समय ही खादी पहनना लाजिमी रखा गया है और यहाँतक छूट दे दी गई है कि अनिच्छा होनेपर सदस्य दूसरोंसे सूत कतवाकर दे सकते हैं। लेकिन यहाँ भी मेरे लिए इस हदतक आग्रह करना सम्भव नहीं था कि बातचीत टूट जाये। प्रथम तो महाराष्ट्र पार्टीके सामने कुछ संवैधानिक अड़चन थी, जिसके कारण वह सदस्यताकी शर्तमें कताई और खादी पहननेकी बातको किसी भी तरहसे स्थान देने को तैयार नहीं थी और दूसरे एक दलके रूपमें स्वराज्य दल इन दोनों बातोंको उतना महत्त्व नहीं देता। मेरी तरह वह इन्हें स्वराज्य-प्राप्तिके लिए अथवा भारतसे विदेशी कपड़ेका बहिष्कार करनेके लिए अनिवार्य नहीं मानता। इसलिए, इस परिवर्तित रूपमें भी खादी और हाथ-कताईको सदस्यताकी शर्तोंमें शामिल करनेपर सहमत होना स्वराज्यवादियोंकी दृष्टिसे उनके द्वारा दी गई एक बहुत बड़ी रियायत थी। अतः, एकताकी खातिर उन्होंने जो रियायत दी है, उसे मैं कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार करता हूँ। जो लोग सदस्यताकी शर्तमें इस परिवर्तनसे नाराज हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि नाम-मात्रकी चवन्निया-सदस्यताकी स्थितिसे निकलकर इस ठोस और प्रभावकारी सदस्यताकी स्थितिमें पहुँच जाना एक बहुत बड़ी प्रगति है। उन्हें याद रखना चाहिए कि सदस्यताकी नई शर्त हर कांग्रेस-जनसे कपड़ोंकी आवश्यकताकी पूर्तिसे भारतको आत्म-निर्भर बनानेकी वांछनीयतामें अपने विश्वासका ठोस सबूत देनेकी कहती है। और यह सबूत भी किसी और तरहसे नहीं, बल्कि भारतके पुराने उद्योग हाथ कताईका पुनरुद्धार करके और इस प्रकार समाजके सबसे जरूरतमन्द वर्गके बीच धनका वितरण सम्भव बनाकर।

कहते हैं, शर्तोंमें इस तरह ढील देनेसे हर आदमी नाजायज फायदा उठायेगा और यज्ञके भावसे कताई करनेका विचार बिलकुल समाप्त हो जायेगा और सदस्यगण खादी तो सिर्फ राजनीतिक समारोहोंके अवसरपर और कांग्रेसका काम करते समय ही पहनेंगे। यदि इस परिवर्तनका परिणाम ऐसा बुरा हुआ तो यह मेरे लिए बहुत दुःखकी बात होगी। किन्तु, ऐसे अनर्थकी आशंका रखनेवाले लोग यह भूल जाते हैं