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समझौता

कि हर कांग्रेस-जन कताई करे, यह चीज अब भी सिर्फ एक व्यक्तिका विचार-मात्र थी। अब लाचार होकर उसने अपने प्रस्तावमें परिवर्तन करना स्वीकार कर लिया है। लेकिन इसके फलस्वरूप यह विचार, परिवर्तित रूपमें ही सही, सदस्यताकी शर्तोंमें शामिल कर लिया गया है। इसलिए यह निश्चय ही एक स्पष्ट उपलब्धि है और इससे खादी पहननेवालों और स्वेच्छासे कातनेवालोंकी संख्यामें भी अवश्य वृद्धि होगी।

इसके अतिरिक्त यह भी याद रखना चाहिए कि सुधारोंको सिफारिशी, बल्कि बन्धनकारी प्रस्तावोंमें भी शामिल करना एक बात है और उन्हें सदस्यताकी शर्तका अंग बनाना बिलकुल दूसरी बात है। सदस्यताकी किसी भी शर्तमें कोई अनिश्चितता नहीं होनी चाहिए और उसे ऐसा होना चाहिए जिससे उसपर आसानीसे अमल किया जा सके। कारण, उसपर अमल न करने का मतलब है सदस्यतासे च्युत हो जाना। सभी अवसरों और सभी उद्देश्योंके लिए खादी पहनना, शायद, हममें से योग्यसे-योग्य व्यक्तियोंके लिए भी सम्भव न हो।

लेकिन व्यवहारमें आप देखेंगे कि जब कांग्रेसके समारोहोंके अवसरपर हमें खादी पहननी पड़ेगी तो हममें से अधिकांश लोगोंके लिए, जो तरह-तरहकी कई पोशाकें रखनेमें असमर्थ हैं, सभी अवसरोंपर खादी ही पहनना जरूरी हो जायेगा। किसी भी उत्साही कांग्रेस-जनके लिए हरएक अवसर कांग्रेसके कार्यका ही अवसर है और जिसके पास लगातार चौबीसों घंटे कांग्रेसका काम न हो, वह स्त्री अथवा पुरुष तो बहुत ही सामान्य कोटिका कांग्रेस-जन हुआ। हमारी सदस्य सूचीमें हजारों मतदाता या प्राथमिक सदस्य होने चाहिए। उन सबके पास कई पोशाकें नहीं हो सकतीं और न दूसरों द्वारा कता सूत खरीदनेके लिए पर्याप्त पैसा ही हो सकता है। उन्हें स्वयं कताई करनी पड़ेगी और इस प्रकार वे हर रोज कमसे कम अपना आधे घंटेका श्रम राष्ट्रको दिया करेंगे और कांग्रेसका जो स्वयंसेवक कताई नहीं करेगा, उसको कांग्रेसकी सदस्यताके प्रत्याशियोंको कताईकी आवश्यकता समझानेमें बहुत मुश्किल पड़ेगी। इसलिए सब-कुछ इस प्रस्तावको ईमानदारी और वफादारीके साथ कार्यान्वित करनेपर ही निर्भर करता है।

जैसा कि स्वयं इस समझौतेमें कहा गया है, यह एक जोरदार सिफारिश-भर है। इसपर मैंने अपनी व्यक्तिगत हैसियतसे हस्ताक्षर किया है। देशबन्धुदास और पण्डित मोतीलाल नेहरूने स्वराज्य दलकी ओरसे हस्ताक्षर किये हैं। इसलिए यह मेरी तथा स्वराज्य दलकी ओरसे सभी कांग्रेस-जनों तथा दूसरोंके विचारार्थ और स्वीकारार्थं एक सिफारिश है। मैं चाहता हूँ कि इस सिफारिशपर सिर्फ इसके गुण-दोषके आधारपर ही विचार किया जाये। मेरा अनुरोध है कि इसपर कोई भी विचार करते समय अपने मनमें मेरा खयाल बिलकुल न लाये। अगर इस सिफारिशको सिर्फ इसके गुणदोषपर ही विचार करके स्वीकार नहीं किया जाता तो वह राजनीतिक एकता प्राप्त करना भी मुश्किल होगा, जो हम चाहते हैं और जो हमारे लिए आवश्यक है; और तब विदेशी कपड़ेका बहिष्कार भी कठिन होगा, जिसके बिना हमारा निस्तार नहीं और जो सबके कातने और सबके खादी पहननेसे ही सम्भव है। यदि असहयोगको स्थगित