पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/३७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३५
समझौतेपर टिप्पणियाँ

को स्वीकार कर लिया तो हम कुछ ही महीनोंमें एक लाखकी संख्यातक पहुँच जायेंगे। यदि प्रति सदस्य प्रति मास २० नम्बरके ५ तोला सूतका औसत उत्पादन माना जाये, तो इसका अर्थ होगा---प्रति मास ३१२.५ मन सूत, या ४५ इंच चौड़ाई और ६ गज लम्बाईकी १२,५०० धोतियाँ या साड़ियाँ। और यदि हम इस बातकी ओर ध्यान दें कि कताईतक की प्रक्रियामें इस मालपर सारा श्रम निःशुल्क रहेगा तो स्पष्ट हो जायेगा कि ये धोतियाँ बाजारमें अपने ढंगके किसी भी मालसे होड़ ले सकती हैं। बस, यदि समूचा राष्ट्र एक इसी राष्ट्रीय कार्यपर अपना सारा प्रयत्न केन्द्रित कर सके तो तनिक भी कठिनाईके बिना और अत्यन्त प्रामाणिक तथा अहिंसात्मक उपायोंसे विदेशी कपड़ेका बहिष्कार किया जा सकता है।

आगामी बैठक

लेकिन सब कुछ आगामी बैठकपर निर्भर है। यह केवल अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी ही नहीं वरन् सभी प्रान्तीय कमेटियों और संघोंके प्रतिनिधियोंकी बैठक होगी। मैं आशा करता हूँ कि ये प्रतिनिधि मौलाना मुहम्मद अलीके आमन्त्रणको उदारतापूर्वक स्वीकार करेंगे। इस संयुक्त बैठकको न केवल स्वयं कांग्रेसकी भीतरी फूट मिटानेके प्रश्नपर वरन् अन्य प्रतिष्ठित नेताओंको कांग्रेसमें शामिल होनेके लिए प्रेरित करनेके प्रश्नपर भी निर्णय लेना होगा। बंगालके दमनका उत्तर देनेके लिए भी कोई कारगर नीति तय करनी है। अपने लक्ष्यतक पहुँचनेके तरीकेके बारेमें हमारे बीच जो भी मतभेद हों, पर सत्ताके निरंकुश प्रयोगका अन्त करनेकी वांछनीयता के बारेमें सभी एकमत हैं।

देश के लिए तबतक कोई स्वतन्त्रता हो ही नहीं सकती जबतक कि करोड़ों मनुष्योंके जीवन, उनकी सम्पत्ति और उनके सम्मानका दारोमदार किसी एक व्यक्तिकी मर्जीपर हो, फिर वह व्यक्ति चाहे कितने ही ऊँचे पदपर आसीन हो। यह कृत्रिम, अस्वाभाविक और असभ्य व्यवस्था है। इसका खात्मा स्वराज्य की आवश्यक पूर्व-शर्त है।

हमारी बेबसी

बेबसी तो जाहिर ही है। लगता है, प्रस्ताव पास करनेके सिवाय और कुछ भी हमारे बसका नहीं रह गया है। किन्तु यदि हम सब मिलकर रचनात्मक कार्यक्रममें जुट सकें तो यह अपने-आपमें आत्मविश्वास और कुछ करनेकी शक्तिको पुनः प्राप्त करनेकी दिशामें एक कदम होगा। यह बात सबको बिलकुल स्पष्ट समझ लेनी चाहिए कि यदि हिन्दू और मुसलमान फिरसे होश सँभाल लें, यदि हिन्दू अछूतोंको अपने भाई मानने लगें और यदि हम कताई और खद्दरको इतना लोकप्रिय बना दें कि वह लगभग विदेशी वस्त्रोंका स्थान लेनेके योग्य हो जाये तो हमें अपने लक्ष्यके प्रति लोगोंका ध्यान आकर्षित करनेके लिए और कुछ करनेकी आवश्यकता नहीं रहेगी। इससे भी बड़ी बात यह है कि फिर न तो हमें हिंसाको प्रोत्साहन देनेके लिए गुप्त समितियोंकी आवश्यकता पड़ेगी, न खुली अहिंसात्मक अवज्ञाकी।