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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसी वांछनीय परिणति तभी सम्भव हो सकेगी जब हम एक और पूर्णतया कृतसंकल्प होकर रचनात्मक कार्यक्रमको सफल बनानेके लिए निरन्तर प्रयास करेंगे। इसलिए दमनके इस विस्फोटका या समूचे राष्ट्रकी इतनी पुरानी और बेबस गुलामीके कारगर इलाजका मेरा अपना यही तरीका है।

अन्य बातें?

श्री एन्ड्रयूजने मेरे उपवासके दिनोंमें भी मेरा ध्यान 'मॉडर्न रिव्यू' में प्रकाशित एक टिप्पणीकी ओर आकर्षित किया था, जिसमें मादक पेय और औषधियों के परित्यागको आन्दोलनके रचनात्मक कार्यक्रममें शामिल न किये जानेपर आश्चर्य प्रकट किया गया था। अन्य मित्रोंने और भी बहुत पहले इस कार्यक्रममें राष्ट्रीय पाठशालाओंका उल्लेख न होनेकी ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया था। मैं इन मित्रोंको बता दूँ कि यह रचनात्मक कार्यक्रम समझौतेका एक अंग है और इसमें वहीं चीजें शामिल की गई हैं जिनके बिना स्वराज्य मुझे असम्भव-सा लगता है। सरकारकी सहायता न पानेवाली और सरकारसे असम्बद्ध पाठशालाएँ हैं और उन्हें बनाये रखना चाहिए। वे कार्यक्रमको पूरा करनेमें हमारी सहायता करती हैं। मादक पेय और औषध-सम्बन्धी सुधार बिना किसी शोर-गुलके निश्चित रूपसे आगे बढ़ रहा है। उसे छोड़ा नहीं जा सकता। अब उसके बारेमें कोई धूम-धाम नहीं दिखाई देती, क्योंकि हमने इस कारण धरना देना छोड़ दिया है कि उससे हिंसा भड़कती थी। इसी तरह हम गैरसरकारी पंचनिर्णयको प्रोत्साहित करनेके विचारका भी त्याग नहीं करेंगे। बात सिर्फ यह है कि स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए इनमें से कोई भी चीज उतनी नितान्त आवश्यक नहीं है, जितनी कि समझौतेमें शामिल की गई वे तीन चीजें हैं और फिर समझौतेमें शामिल इन बातोंके बारेमें राष्ट्रीय कार्यकर्त्ताओंमें कोई मतभेद भी नहीं है, जैसा कि इन तीन बातोंके बारेमें है। यहाँ मैंने राष्ट्रीय पाठशालाओं और गैरसरकारी पंचनिर्णय के साथ-ही-साथ मादक पेय तथा औषध-सम्बन्धी सुधारका उल्लेख किया है। इससे यह मतलब न समझा जाये कि मैं इन तीनोंको समान महत्त्वका मानता हूँ। मादक पेय तथा औषध-सम्बन्धी सुधारकी समस्या सर्वाधिक राष्ट्रीय महत्त्वकी समस्या है। यदि किन्हीं भी प्रामाणिक उपायोंसे हम आज ही मदिरापान और अफीमके व्यसनसे पूर्ण रूपसे मुक्त हो सकते तो मैं उन्हें फौरन अपना लेता और उनके प्रयोगकी सलाह दे देता। किन्तु हमारे पास ऐसा कोई अक्सीर इलाज है ही नहीं। देशके प्रशासनमें जबतक हमारी राय कुछ निर्णयात्मक महत्त्व न रखने लगे, तबतक इस बुराईको निर्मूल करनेके लिए धरना देनेके सिवाय और कुछ करनेमें हम असमर्थ हैं। प्रसन्नताकी बात यह है कि यद्यपि यह दोष बुरा है, पर राष्ट्रीय दोष नहीं बन पाया है। यह दोष एक छोटे जन-समुदायतक ही सीमित है, यद्यपि दुर्भाग्यवश उसकी संख्या बढ़ती जा रही है। अतः यदि हमारे हाथमें सत्ता हो तो मैं जानता हूँ मदिरा अथवा अफीमके निषेधका कोई विरोध नहीं हो। यह तो हमारी सरकार ही है जो मद्य और मादक वस्तुओंके अभिशापसे राष्ट्रको मुक्ति दिलानेके मार्गमें रोड़ा बन रही है। बात यह नहीं है कि हम कानून बनाकर पियक्कड़ोंको