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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भाषाका दुरुपयोग करना है। इसकी खूबियोंके बारेमें मेरे मनमें कोई आशंका नहीं है। यदि हाथकी कताई देशको आत्मनिर्भर बनानेका एक कारगर उपाय है तो उसे मताधिकारका अंग बनाना ही चाहिए। राष्ट्रीय इच्छा और संकल्पको व्यक्त करनेका यह सबसे अच्छा तरीका है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १३-११-१९२४

२७३. टिप्पणियाँ

राष्ट्र ऋण

एक पत्र लेखक लिखते हैं:

आपको शायद मालूम होगा कि १९२२ में गयामें कांग्रेसके खुले अधिवेशनमें चक्रवर्ती राजगोपालाचारी द्वारा पेश किया गया एक प्रस्ताव, जिसमें कहा गया था कि भारत सरकार ३१-१२-१९२२ के बादसे राष्ट्रकी ओरसे जितने भी ऋण ले उनकी देयतासे इनकार किया जाय, पारित हुआ था। कहने की जरूरत नहीं कि हमारे देशके सार्वजनिक जीवनसे सम्बद्ध अनेक उत्तरदायी व्यक्ति उक्त प्रस्तावपर आपकी राय जाननेको उत्सुक हैं।

मैं खुद स्वीकार करता हूँ कि मुझे उक्त प्रस्तावके बारेमें जानकारी नहीं है। किन्तु अब जब वह मेरे ध्यानमें लाया गया है, मुझे उसका अनुमोदन करनेमें कोई संकोच नहीं। उस प्रस्तावको पारित करनेके लिए मैं श्री राजगोपालाचारी और कांग्रेस, दोनों को बधाई देता हूँ। आज हम शक्तिहीन हो सकते हैं और हैं भी, किन्तु संसारको जानना ही चाहिए कि भारतके धनकी बरबादी और फिजूलखर्चीके बारेमें हम क्या सोचते हैं। स्वर्गीय लॉर्ड सैलिसबरी इसे रक्त-स्रावकी प्रक्रिया कहा करते थे। मेरा तो खयाल है कि स्वराज्यकी योजना कोई भी हो, उसमें भारत सरकार अथवा इंडिया ऑफिस द्वारा किये गये वादोंकी निष्पक्ष जाँच और पिछली सरकारके वित्तीय सौदोंका नये सिरेसे समायोजन करनेका आग्रह भी शामिल रहेगा। अतः मैं इस प्रस्तावको आवश्यक और सम्माननीय मानता हूँ। आज उसका मजाक उड़ाया जा सकता है। किन्तु जब हमें हमारे अधिकार प्राप्त हो जायेंगे, तब हम ठीक समय पर अपना यह मत व्यक्त कर देनेके तथ्यका उल्लेख गर्वके साथ करेंगे। कारण, कांग्रेसकी सीमाओंके बारेमें मैंने जो-कुछ भी कहा है उसके बावजूद, इस बातसे कौन इनकार कर सकता है कि वह राष्ट्रका सर्वाधिक प्रतिनिधित्व करनेवाली संस्था है? यह हमारा काम है कि हम उसे इतनी अधिक प्रातिनिधिक बना दें कि उसकी ओर सब आकर्षित हों और उसकी बातोंकी कद्र की जाये।