राष्ट्रीय क्षति
'यंग इंडिया' के अनेक पाठक श्रीयुत दलबहादुर गिरिको केवल नामसे ही जानते हैं। कुछने तो शायद उनका नाम भी नहीं सुना होगा। तथापि वे सबसे बहादुर राष्ट्रीय कार्यकर्त्ताओंमें से थे। अभी-अभी 'यंग इंडिया' के लिए लिखते समय मेरे पास कालिम्पोंगसे एक तार आया है, जिससे मुझे इस अपेक्षाकृत अज्ञात देशभक्तकी मृत्युका समाचार मिला है। मैं उनके कुटुम्बके प्रति अपनी समवेदना प्रकट करता हूँ। वे एक सुसंस्कृत गोरखा थे और दार्जिलिंग तथा आसपासके इलाकेमें गोरखा लोगोंमें अच्छा काम कर रहे थे। १९२१में हजारों लोगोंके साथ वे भी अपने असहयोग-सम्बन्धी कार्योंके लिए बन्दी बनाये गये थे। कारावासमें वे बुरी तरह बीमार पड़ गये थे। कुछ ही महीने पहले उन्हें रिहा किया गया था। मुझे मालूम हुआ है कि वे अपने पीछे बहुत बड़ा परिवार छोड़ गये हैं, जिसकी जीविकाके साधन नहीं हैं। बंगालके समाचारपत्रोंमें उनके लिए एक अपील प्रकाशित हुई थी। मैं आशा करता हूँ कि बंगालकी प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी स्वर्गीय श्रीयुत दलबहादुर गिरिके परिवारके बारेमें सारी जानकारी प्राप्त करेगी और जो सहायता आवश्यक होगी, अवश्य देगी।
यंग इंडिया १३-११-१९२४
२७४. सम्मति: मॉडर्न स्कूलकी दर्शक-पुस्तिका में
दिल्ली
१३ नवम्बर,१९२४
इन आर्वाचीन पाठशालाओंको देखकर मुझे बहोत आनंद हुआ। पाठशालाकी स्वच्छता प्रशंसनीय है। मुझे केवल एक संशय है। अर्वाचिनत्वकी बाढ़में यदि प्राचीनत्वका नाश हो जायगा तो भारतवर्षके इन युवकोंको और युवतीयोंको बड़ी हानि होगी। ईतनी सूचना करनेकी मैं धृष्टता करता हूँ क्योंकि इस पाठशालाकी उत्पत्तिमें मैं हेतुकी पवित्रता देखता हुं और ईस संस्थाकी मैं उन्नति चाहता हुँ।
मोहनदास गांधी
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई