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२७६. पत्र: रोमाँ रोलाँको

१३ नवम्बर, १९२४

प्रिय मित्र,

आपका कृपा-पत्र मिला। कुमारी स्लेड[१] उसके कुछ समय बाद पहुँची। कैसी अमूल्य निधि आपने मुझे सौंपी है। मैं आपके इस अगाध विश्वासके योग्य बननेकी कोशिश करूँगा। मैं कुमारी स्लेडकी हर तरह से सहायता करनेकी कोशिश करूँगा, ताकि वे पूर्व और पश्चिमके बीच एक लघु सेतु बन सकें। मैं स्वयं इतना अपूर्ण हूँ कि किसीको शिष्य बना ही नहीं सकता। मेरे (सत्यके) अन्वेषण में वे मेरी सहयोगिनी होंगी और मैं चूँकि उम्रमें बड़ा हूँ, इसलिए आध्यात्मिक अनुभूतिमें किंचित् आगे हूँ, अतः आपके साथ-साथ मैं भी उनके अभिभावकका गौरव-पद प्राप्त करना चाहूँगा। कुमारी स्लेडमें अपने-आपको नये परिवेशके अनुकूल ढालनेकी अद्भुत क्षमता दिखाई देती है। हम लोग अबतक उनसे काफी घुल-मिल भी गये हैं। उनसे चन्द दिन पहले आश्रममें एक फ्रांसीसी बहन भी आई हैं। कुमारी स्लेडसे मैंने कह दिया है कि उनके बारेमें वे ही आपको लिख दें। शेष बातें आपको उन्हींसे मालूम हो जायेंगी।

अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ८८४९) से।

सौजन्य: आर० के० प्रभू

२७७. भाषण: रामजस कालेज, दिल्ली में

१३ नवम्बर, १९२४

इसके बाद महात्माजीने बैठे हुए ही छात्रोंके सामने भाषण दिया। समयसे बहुत पहले ही आ जानेके लिए उन्होंने क्षमा माँगी और कहा कि मुझे बी अम्माँके अन्तिम संस्कारमें शामिल होना है इसलिए मैं जल्दी आ गया। मैं छात्रोंसे कहूँगा कि वे इस मामलेमें मेरे उदाहरणका अनुकरण न करें बल्कि समयका मूल्य समझनेकी आदत डालें। श्री गोखलेको समयकी अद्भुत पाबन्दीका उल्लेख करते हुए गांधीजीने कहा कि भारतीयोंमें समयकी पाबन्दीका गुण नहीं है। इसकी आदत खास तौरसे डालनी चाहिए।

गांधीजीने राय साहब केदारनाथ द्वारा कालेजके लिए किये गये महान् त्यागका उल्लेख किया और कहा कि मुझे दुःख है कि कुछ समय पहले जब प्रिन्सिपल गिड-

  1. मीराबहन।