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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वानीने मुझे निमन्त्रित किया था उस समय मैं कालेजमें नहीं आ सका था। मुझे इस बात पर आश्चर्य था कि राय साहब केदारनाथने यह कालेज शहरसे दूर पहाड़ी पर क्यों बनवाया है। जब मुझे सुकुमार बाबूने रास्तेमें बताया कि कालेजके संस्था-पकका आदर्श ब्रह्मचर्य है और वे छात्रोंको सिनेमा और थियेटरोंसे दूर रखना चाहते हैं तो मैं कायल हो गया। हिन्दू सभ्यतामें ब्रह्मचर्यका अभिन्न स्थान है जबकि पश्चिमी सभ्यतामें उसका अभाव है। यह कहा जा सकता है कि पश्चिमके लोग समृद्ध हुए हैं, लेकिन मैं पूछता हूँ कि पश्चिमकी सभ्यता कितनी पुरानी है। मिस्र, बेबिलोन, यूनान और अन्य महान् सभ्यताएँ नष्ट हो गई, लेकिन भारतीय सभ्यता अब भी जीवित है। इसका कारण यह है कि भारतीय सभ्यतामें कोई ऐसी चीज है जो उनके पास नहीं थी। भारतीय सभ्यतामें निहित यह चीज उसकी ब्रह्मचर्यके आदर्शकी उपासना ही है।

इसके बाद गांधीजीने भागवतमें से जिह्वा-संयमके बारेमें एक श्लोक सुनाया और कहा कि जिह्वापर नियन्त्रणका अर्थ है भोजन और वाणीपर नियन्त्रण। छात्रोंका जिह्वापर विशेष रूपसे पूरा नियन्त्रण होना चाहिए।'

तत्पश्चात् उन्होंने सत्संगके बारेमें बोलते हुए सलाह दी कि प्रत्येक छात्रको संसारकी अच्छीसे-अच्छी पुस्तक और अच्छे-अच्छे विचारोंका संग करना चाहिए और कहा कि जब मैं विद्यार्थी था उस समय मेरे एक सहपाठीने मुझे रेनॉल्डके उपन्यास पढ़नेकी राय दी थी। लेकिन मैंने उन्हें कभी नहीं पढ़ा। महात्माजीने कहा, "जो भी चीज बुरी है, उससे असहयोग करो।"

अपने भाषण के अन्तमें उन्होंने प्रार्थनाकी प्रभावकारिताके बारेमें बताया। उन्होंने कहा कि जब मैं जेलमें था तब मुझे प्रार्थनाकी प्रभावकारिता विशेष रूपसे अनुभव हुई। जब मनमें प्रार्थनापूर्ण विचार होते हैं उस समय संसारको सब चीजें अच्छी और अनुकूल लगती हैं। जीवनमें प्रगति करनेके लिए प्रार्थना एक अनिवार्य चीज है। राम या खुदाका नाम लेनेसे बुरे विचार मनसे निश्चय ही दूर हो जाते हैं और नई शक्ति और उत्साह प्राप्त होता है।

उन्होंने कहा कि मैं अभी भी बहुत कमजोर हूँ और इस समय इससे ज्यादा बोलनेकी इच्छा नहीं है।

फूलोंकी वर्षा और 'वन्देमातरम्' तथा 'महात्मा गांधीकी जय' के नारोंके साथ महात्माजीने शामको लगभग ३.३० बजे कालेजसे प्रस्थान किया।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दुस्तान टाइम्स, १५-११-१९२४