२७८. पत्र: मगनलाल गांधीको
[ १३ नवम्बर, १९२४ के पश्चात् ][१]
डा० मेहता और अवन्तिका बहनपर ब्रह्मचारीने जो दावा किया है, उसका क्या हुआ?
हमारे यहाँ क्या एक धुनकी [ प्रतिदिन ] आठ घंटे नहीं चल सकती? क्या उसमें हमारे अच्छी धुनाई करनेवाले, तुलसी मेहर, नवीन आदिका उपयोग नहीं हो सकता? हममें एक खास हृदतक पूनियाँ तैयार करनेकी भी क्षमता होनी चाहिए। इस विषयपर तो बातचीत हुई ही नहीं।
दलबहादुर गिरिका देहान्त हो गया। वे अपनी विधवा और बच्चोंको बेसहारा छोड़ गये हैं। देहावसानसे पहले वे उन्हें यहाँ आ जानेको कह गये थे। मैंने कहला भेजा है कि विधवा बहन यहाँ आ सकती हैं। हमें उनका भरण-पोषण करना ही होगा। कल उनका तार आया है कि उन्हें आनेका किराया मिल जाये तो वे आने को तैयार हैं। मैंने किरायेका पैसा दास बाबूसे ले लेनेके लिए तार किया है। मेरी गैरहाजिरीमें आई तो उन्हें दिक्कत तो होगी, लेकिन आयें तो निभा लेना।
बापू
गुजराती पत्र ( सी० डब्ल्यू० ६१९५ ) से।
सौजन्य: राधाबहन चौधरी
२७९. सन्देश: 'वर्ल्ड टुमारो को
दिल्ली
१४ नवम्बर, १९२४
३९६, ब्रॉडवे
न्यूयार्क
संयुक्त राज्य अमेरिका
अहिंसाके अपने अध्ययन और अनुभवसे मैं इस निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि यह संसारकी सबसे बड़ी शक्ति है। यह सत्यको साक्षात्कार करनेका सबसे अचूक उपाय है और इसी उपायसे उसे सबसे जल्दी प्राप्त भी किया जा सकता है, क्योंकि कोई
- ↑ दलबहादुर गिरिका देहान्त, जिसका उल्लेख पत्रमें किया गया है, १३ नवम्बर, १९२४ को हुआ था। देखिए "टिप्पणियाँ", १३-११-१९२४ का उपशीर्षंक "राष्ट्रीय क्षति।"